रेयर अर्थ एलिमेंट्स उत्पादों पर चीनी निर्यात प्रतिबंधों के चलते विभिन्न उद्योगों पर मंडराते संकट का कूटनीतिक समाधान ढूंढे भारत सरकार!

रेयर अर्थ एलिमेंट्स उत्पादों पर चीनी निर्यात प्रतिबंधों के चलते भारत का इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग संकट में, अविलंब  कूटनीतिक समाधान खोजे सरकार!
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

रेयर अर्थ एलिमेंट्स से जुड़े उत्पादों पर चीन द्वारा गत अप्रैल-मई माह 2025 से लगाए गए निर्यात प्रतिबंध ने भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र, खासकर तेजी से बढ़ते ईवी सेगमेंट, में संकट पैदा कर दिया है। क्योंकि रेयर अर्थ मैग्नेट ईवी मोटर के लिए जरूरी हैं। बता दें कि ईवी वाहनों में प्रति वाहन लगभग 550 ग्राम मटीरियल चाहिए, जबकि सामान्य पेट्रोल-डीजल वाहनों में 140 ग्राम। चूंकि ये मैग्नेट पावर विंडो, ऑडियो सिस्टम और एंटी-लॉक ब्रेक जैसे हिस्सों में भी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन आरईई उत्पादों के बिना इलेक्ट्रिक वेहिकिल्स उद्योग के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

यही वजह है कि भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (SIAM) ने लगातार कम हो रहे स्टॉक की आपूर्ति को बनाए रखने के लिए समय रहते ही समुचित कदम उठाने की चेतावनी देते हुए दो टूक शब्दों में कहा है कि यदि जल्द ही इसका समाधान नहीं हुआ तो ईवी उद्योग ‘पूरी तरह से ठप’ हो सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत के 2025-26 के बजट में घोषित विभिन्न ई-मोबिलिटी योजनाओं के जरिए ईवी उद्योग को बढ़ावा मिला है, लेकिन मौजूदा संकट उसकी चीन पर निर्भरता को उजागर करता है। 

चूंकि ईवी कार की असेम्बलिंग के स्टॉक घट रहे हैं और तत्काल कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हैं, जिससे बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर जैसी कंपनियों को उत्पादन में देरी और लागत दोनों बढ़ने का डर सता रहा है। चूंकि चीन दुनिया के 85-95 प्रतिशत रेयर अर्थ मैग्नेट की आपूर्ति करता है और भारत की चीन पर निर्भरता ने इस उद्योग को ही जोखिम में डाल दिया है। 

बताया जाता है कि जटिल आयात परमिट और एंड-यूज सर्टिफिकेट की जरूरत ने चीनी बंदरगाहों पर ही विभिन्न शिपमेंट अटका दिए हैं। यही वजह है कि मारुति सुजुकी, बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर जैसी इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनियों ने चेतावनी दी है कि गुजश्ते जून और आने वाले जुलाई 2025 में भी यदि आपूर्ति बाधित रही तो ईवी का उत्पादन रुक सकता है। 

भले ही मारुति सुजुकी ने अभी कोई तत्काल प्रभाव न होने की बात कही, लेकिन उनकी आगामी इलेक्ट्रिक एसयूवी, ई विटारा, को जोखिम है। वहीं, बजाज ऑटो के कार्यकारी निदेशक राकेश शर्मा ने कहा कि आरईई उत्पादों की कमी से इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर उत्पादन पर ‘गंभीर प्रभाव’ पड़ेगा, जो भारत की ई-मोबिलिटी योजना का अहम हिस्सा है। 

यही वजह है कि एसआईएएम (SIAM) और ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ACMA) ने सरकार से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, क्योंकि एक भी हिस्से की कमी पूरी असेंबली लाइन ही रोक सकती है। इस प्रकार से यह आर्थिक गति को भी रोक सकता है क्योंकि ऑटो सेक्टर भी भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। 

इसलिए इसकी लागत बढ़ने और ईवी लॉन्च में देरी से भारी नुकसान हो सकता है और 2030 तक 30 प्रतिशत ईवी लक्ष्य को झटका लग सकता है। यही वजह है कि भारत सरकार बिना विलंब किए चीन सरकार से बीजिंग में बातचीत के लिए अपना प्रतिनिधिमंडल भेज रही है, लेकिन भारत को अन्य विकल्पों की तरफ भी देखना होगा। 

इसी कड़ी में भारत जून 2025 में बीजिंग में ऑटो इंडस्ट्री लीडर्स का प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बना रहा है ताकि निर्यात मंजूरी तेज हो। सरकार को वाणिज्य और विदेश मंत्रालयों के जरिए अस्थायी राहत हासिल करनी चाहिए और चीनी अधिकारियों के साथ भरोसा बनाना चाहिए।

ऐसे में सीधा सवाल है कि चीन के इस प्रतिबंध का भारत के ईवी इंडस्ट्री पर क्या प्रभाव पड़ेगा और भारत के सामने इसका क्या क्या विकल्प हैं और उसे क्या क्या कदम उठाने चाहिए? कहना न होगा कि चीन से रेयर अर्थ आपूर्ति की निर्भरता कम करना भारत के लिए बड़ी चुनौती है। क्योंकि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में चीन का 70-80 प्रतिशत प्रोसेसिंग और 90 प्रतिशत से ज्यादा मैग्नेट उत्पादन पर नियंत्रण है। 

ऐसा इसलिए कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोतों की प्रोसेसिंग क्षमता सीमित है, और इसे बढ़ाने में सालों का वक्त और अरबों रुपये का निवेश चाहिए। वहीं, पर्यावरण सम्बन्धी चिंताएं भी इस राह में बड़ी बाधा हैं, क्योंकि रेयर अर्थ को निकालने और इसकी प्रोसेसिंग की प्रक्रिया बहुत प्रदूषण पैदा करती है, जिसके लिए सख्त नियमों का पालन जरूरी है, जो साझेदार देशों में परियोजनाओं को देरी कर सकता है।

वहीं, रेयर अर्थ एलिमेंट्स के उत्पादन की बड़ी लागत भी एक बड़ी समस्या है। भले ही जापान की उन्नत प्रोसेसिंग तकनीक भरोसेमंद है, लेकिन महंगी है, जिससे भारत के कीमत-संवेदनशील बाजार में ईवी की लागत और कीमत बढ़ सकती है। वहीं, भू-राजनीतिक जटिलताएं स्थिति को और कठिन बनाती हैं। 

देखा जाए तो, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश चीन के खिलाफ भले ही भारत के रणनीतिक साझेदार हों, लेकिन उनकी निर्यात नीतियां अपनी जरूरतों और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे भारत को सीमित आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है।

ऐसे में रेयर अर्थ मटीरियल के संकट से निपटने और ईवी उद्योग सहित विभिन्न उद्योगों को बचाने के लिए भारत को अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों उपाय अपनाने होंगे। इस दिशा में सर्वप्रथम उसे अपने कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे। वहीं, सप्लाई चेन डाइवर्सिफिकेशन पर भी भारत को ध्यान देना होगा। 

इस नजरिए से भारत को ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौते या क्वॉड पहल के जरिए साझेदारी करनी चाहिए। लिनास रेयर अर्थ्स या हिताची मेटल्स जैसी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम कच्चा माल और प्रोसेसिंग तकनीक हासिल कर सकते हैं।

वहीं, भारत को रेयर अर्थ एलिमेंट्स के घरेलू उत्पादन भी बढ़ाना चाहिए। सम्भवतया इसी दृष्टिकोण से भारी उद्योग मंत्रालय स्थानीय मैग्नेट उत्पादन के लिए प्रोत्साहन योजना और संसाधनगत ढांचा तैयार कर रहा है। इस लिहाज से भारत को राजस्थान और ओडिशा जैसे क्षेत्रों में रेयर अर्थ भंडारों की खोज तेज करनी चाहिए और प्रोसेसिंग सुविधाओं में निवेश करना चाहिए, भले ही पर्यावरण और लागत चुनौतियां चाहे कुछ भी हों।

वहीं, भारत को इस विषयक रिसर्च और इनोवेशन पर भी ध्यान देना होगा। इससे गैर-रेयर अर्थ मैग्नेट या रीसाइक्लिंग तकनीकों पर रिसर्च में निवेश से निर्भरता कम हो सकती है। जापानी और अमेरिकी विश्वविद्यालयों या टेक कंपनियों के साथ सहयोग इसे तेज कर सकता है।

वहीं, भारत को स्टॉकपाइलिंग और इन्वेंट्री मैनेजमेंट पर भी गौर करना होगा। बताया जाता है कि भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों को भविष्य के संकटों से बचने के लिए रेयर अर्थ मटीरियल का रणनीतिक भंडार बनाना चाहिए, जैसा कि वर्तमान संकट में जून 2025 तक स्टॉक खत्म होने का डर है।

जहां तक पॉलिसी सपोर्ट की बात है तो सरकार को 2025-26 के बजट में स्थानीय मैग्नेट उत्पादन के लिए सब्सिडी और वैकल्पिक सप्लाई चेन में निवेश करने वाली कंपनियों के लिए कर छूट शामिल करनी चाहिए थी, जो नहीं हो सका है। इस बारे में सरकार अविलंब रुख बदले।

जहां तक वैश्विक पैरोकारी की बात है तो भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे सहयोगियों के साथ विश्व व्यापार संगठन (WTO) के जरिए चीन पर निर्यात प्रतिबंध हटाने का दबाव बना सकता है। ये उपाय, हालांकि चुनौतीपूर्ण, भारत के ईवी उद्योग की मजबूती और ई-मोबिलिटी लक्ष्यों के लिए जरूरी हैं।

चीन का रेयर अर्थ निर्यात प्रतिबंध भारत के ईवी उद्योग के लिए बड़ा खतरा है, जिससे उत्पादन रुकने और लागत बढ़ने का डर है। चीन के 90% मैग्नेट नियंत्रण के कोई तत्काल विकल्प नहीं हैं, इसलिए भारत को कूटनीति, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ साझेदारी, और घरेलू उत्पादन में निवेश करना होगा। 

हालांकि, इस नजरिए से उच्च लागत, पर्यावरण चिंताएं और भू-राजनीतिक बाधाएं सम्बन्धी चुनौतियां भी हैं, लेकिन सप्लाई चेन में डाइवर्सिफिकेशन, इनोवेशन और वैश्विक सहयोग से भारत अपने ईवी सपनों को बचा सकता है और टिकाऊ ऑटोमोटिव भविष्य की ओर बढ़ सकता है।

वहीं, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि अमेरिका-चीन में जारी ट्रेड वॉर का एक दिलचस्प पहलू यह है कि यह भारत के लिए कुछ नए अवसर पैदा कर सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका-चीन के बीच बढ़ती दूरी का फायदा भारत को मिल सकता है। 

उदाहरण के लिए, चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर भारी टैरिफ के कारण चीनी कंपनियां भारतीय निर्यातकों से संपर्क साध रही हैं। जिससे भारत टेक्सटाइल, सेमीकंडक्टर और अन्य क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। 

हालांकि, भारत को अभी अपनी बुनियादी ढांचा में सुधार की जरूरत है। एक रिपोर्ट इस बात की चुगली करती है कि, भारत ने अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का फायदा उठाने की कोशिश तो की, लेकिन वियतनाम और ताइवान जैसे देशों ने ज्यादा सफलता हासिल की। फिर भी, अगर भारत सही नीतियां अपनाए, तो वह रेयर अर्थ मैटेरियल्स और अन्य क्षेत्रों में वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता बन सकता है।

चूंकि चीन द्वारा रेयर अर्थ मिनरल्स और उनसे जुड़ी मैग्नेट्स के निर्यात पर नए लाइसेंसिंग नियम लागू किए दो महीने हो चुके हैं, लेकिन अब इसके गंभीर असर पश्चिमी देशों की औद्योगिक इकाइयों में महसूस किए जा रहे हैं। चूंकि स्मार्टफोन से लेकर लड़ाकू विमानों तक में जरूरी इन सात तत्वों (डिस्प्रोसियम, गैडोलिनियम, लुटेशियम, समेरियम, स्कैन्डियम, टरबियम और इट्रियम) की आपूर्ति में आई रुकावटों से ऑटोमोबाइल सेक्टर में हलचल मच गई है।

जानकार बताते हैं कि रेयर अर्थ तत्व वास्तव में दुर्लभ नहीं होते, लेकिन इनका खनन और प्रोसेसिंग अत्यंत जटिल होती है। दुनिया में कुल 17 रेयर अर्थ तत्व हैं, जिनमें 15 लैन्थेनाइड्स और दो अन्य- स्कैन्डियम और इट्रियम शामिल हैं। ये आधुनिक जीवन की धुरी बन चुके हैं- चाहे वो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स हों, विंड टर्बाइन हों या रक्षा प्रणाली। 

समझा जाता है कि चीन इस क्षेत्र में केवल खनन ही नहीं, बल्कि 90 प्रतिशत प्रोसेसिंग क्षमता भी रखता है। क्योंकि अमेरिका, म्यांमार जैसे देश भी खनन करते हैं, लेकिन अंतिम प्रोसेसिंग अधिकतर चीन में ही होती है। यही कारण है कि बीजिंग को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारी दबदबा हासिल है।

अपनी इसी वैश्विक स्थिति का फायदा उठाते हुए चीन ने गत अप्रैल 2025 में अपने वाणिज्य मंत्रालय के मार्फ़त एक घोषणा की थी कि अब सात प्रकार के रेयर अर्थ तत्वों और मैग्नेट्स के निर्यात के लिए लाइसेंस जरूरी होगा, जिसमें अंतिम उपयोग का प्रमाण और डिक्लेरेशन भी देना होगा। भले ही यह नियम सभी देशों पर लागू होता है, लेकिन इसे अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोध के तौर पर देखा जा रहा है। 

बता दें कि चीन ने इससे पहले गैलियम, जर्मेनियम और टंगस्टन जैसे अन्य अहम खनिजों पर भी निर्यात नियंत्रण लगाया था। जबकि बीजिंग का कहना है कि ये कदम अवैध खनन रोकने और पर्यावरण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं। लेकिन अमेरिका समेत कई देश इसे ‘स्ट्रैटेजिक वेपनाइजेशन’ मानते हैं। 

बता दें कि भारत के पास दुनिया के 6 प्रतिशत रेयर अर्थ भंडार हैं, लेकिन उसकी वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी मात्र 0.25% है। उल्लेखनीय है कि रेयर अर्थ मैटेरियल्स, विशेष रूप से नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन (NdFeB) मैग्नेट, ईवी मोटर, स्टीयरिंग सिस्टम, ब्रेक और अन्य हिस्सों के लिए जरूरी हैं। 

चूंकि चीन वैश्विक रेयर अर्थ मटीरियल के उत्पादन का 90% से ज्यादा नियंत्रित करता है। इसलिए दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऑटोमोटिव बाजार भारत ने पिछले साल 460 टन मैग्नेट आयात किए और 2025 में 700 टन ($30 मिलियन मूल्य) आयात करने की योजना थी। 

हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव के चलते लगाए गए इस प्रतिबंध ने चीनी बंदरगाहों पर शिपमेंट अटका दिए हैं, जिससे जून 2025 तक उत्पादन रुकने का खतरा है। चूंकि रेयर अर्थ एलिमेंट्स उत्पादों पर चीनी निर्यात प्रतिबंधों के चलते भारत का इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग संकट में है, इसलिए केंद्र सरकार को अविलंब कूटनीतिक समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।

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