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राजा-प्रजा में विकसित समझदारी से टल जाते हैं बड़े से बड़े संकट

राजा-प्रजा में विकसित समझदारी से टल जाते हैं बड़े से बड़े संकट # महापुरुषों की विराट राष्ट्रीय चेतना को संकीर्णता के दायरे में न समेटें, बता रहे हैं यूपी के संस्कृति विभाग के विशेष सचिव डॉ दिनेश चंद्र सिंह @ डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस राजा-प्रजा के बीच कितना मधुर व भरोसे का सम्बन्ध होना चाहिए और इससे क्या-क्या लाभ हुए हैं, इस बात के दृष्टांत भारतीय इतिहास में अनेक हैं। इसके विपरीत, जब शासक-शासित के बीच जनसेवा की बजाए जनशोषन-उत्पीड़न की प्रवृति हावी हो जाती है तो इसके कितने बड़े व भयावह दुष्परिणाम हुए हैं, इस बात के उदाहरण भी हमारे इतिहास में भरे पड़े हैं। यह दोनों स्थितियां हमारे तल्ख वर्तमान के लिए कुछ सीख हैं तो कुछ सबक भी।  चाहे पुरातन राजतंत्र हो या फिर आधुनातन लोकतंत्र, यथा राजा तथा प्रजा की कहावत को दोनों चरितार्थ करते आये हैं। राजतंत्र में शक्ति बल और लोकतंत्र में संख्या बल, शासन की प्रवृत्ति पर चाहे जितनी भी हावी रही हो और इसे संतुलित करते रहने के चाहे जितने भी यत्न किये गए हों। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब जब जनता को सुख, शांति, सुरक्षा की गारंटी मिली, वह हर विपरीत