रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं? भारत इसका उत्पादन क्यों बढ़ा रहा है? क्या वह वैश्विक महाशक्ति बन सकता है?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं? भारत इसका उत्पादन क्यों बढ़ा रहा है? क्या इसका उत्पादन बढ़ाए बिना भारत वैश्विक महाशक्ति बन सकता है?
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
कहावत है कि "अग्र सोची, सदा सुखी।" यानी कि वर्तमान में ही भविष्य की सटीक रणनीति बना लेने वाला व्यक्ति ही हमेशा सुखी रहता है। किसी राष्ट्र के ऊपर भी यह बात अक्षरशः लागू होती है। ऐसे में यदि भारत को वैश्विक महाशक्ति बनना है तो उसे रेयर अर्थ एलिमेंट्स के उत्पादन, संवर्द्धन व विपणन पर ध्यान देना होगा। वहीं, जबतक ऐसा नहीं हो जाता, उसे इसके आपूर्तिकर्ता देशों यानी चीन, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे महत्वपूर्ण देशों के साथ मधुर कारोबारी सम्बन्ध बनाये रखना होगा। इसलिए देशवासियों के जेहन में यह सवाल उठ रहा है कि रेयर अर्थ एलिमेंट्स क्या हैं? भारत इसका उत्पादन क्यों बढ़ा रहा है? और क्या इसका उत्पादन बढ़ाए बिना भारत वैश्विक महाशक्ति बन सकता है?
जानकारों का कहना है कि भारत अब दुनिया की चौथी आर्थिक महाशक्ति बन चुका है और शीघ्र ही वह जर्मनी को पछाड़कर तीसरी आर्थिक महाशक्ति भी बन जायेगा। जिस तरह से अब वह अमेरिका व चीन के मुकाबिल खड़ा है, उससे दोनों देश भारत की पैर खींचने और पाकिस्तान-बंगलादेश में उलझाने की कुटिल चालें चल रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार की सख्त रणनीति से इनका मुँहकी खाना तय है।
वहीं, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि अमेरिका-चीन के बीच जारी आर्थिक-सामरिक प्रतिद्वंद्विता किसी फिक्स मैच की तरह है, जिनका मकसद पाकिस्तान को औजार बनाकर और भारत-रूस की मित्रता को तोड़कर अपनी बादशाहत पूरी दुनिया में बनाये रखना है। जबकि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान की कमर तोड़कर भारत अब खुद ही एक बड़ा वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है। ऐसे में "रेयर अर्थ एलिमेंट्स"का उत्पादन बढ़ाए बिना भारत वैश्विक महाशक्ति कदापि नहीं बन सकता है?
यह ठीक है कि अब भारत सरकार भी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के उत्पादन पर जोर दे रही है, लेकिन इस मामले में जब तक लक्ष्य हासिल नहीं हो जाए, तब तक उसे अंतरराष्ट्रीय सियासत व कूटनीति में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा, अन्यथा छोटी सी भी चूक उसके स्वर्णिम भविष्य पर भारी पड़ सकती है।
बता दें कि रेयर अर्थ एलिमेंट्स का उत्पादन करने वाला चीन दुनिया का सबसे बड़ा देश है। इस क्षेत्र में इसका एकाधिकार है। हालांकि, भारत भी इसके उत्पादन में पीछे नहीं है और अमेरिका के बाद उसका तीसरा स्थान है। चूंकि अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वॉर के बीच चीन ने पिछले दिनों रेयर अर्थ एलिमेंट्स (आरईई) के निर्यात पर बैन लगा दिया है। इसलिए तेजी से औद्योगिक विकास कर रहे भारत की मुश्किलें बढ़नी स्वाभाविक है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि 2025 में जब सत्ता संभालते ही ट्रंप ने चीन पर टैरिफ बढ़ाने और चिप डिजाइन सॉफ्टवेयर जैसी तकनीकों पर प्रतिबंध लगाने की शुरुआत की। वहीं, दो कदम आगे बढ़ते हुए अमेरिका ने चीन को अपनी सबसे एडवांस चिप एक्सपोर्ट करने पर भी बैन लगा दिया। क्योंकि ट्रंप प्रशासन का दावा है कि इन एडवांस और ताकतवर चिप्स का इस्तेमाल कर चीन अपनी सेना को आधुनिक और ताकतवर बना रहा है।
यही वजह है कि अमेरिका पर पलटवार करते हुए चीन ने न केवल अमेरिकी सामानों पर टैरिफ बढ़ाए, बल्कि रेयर अर्थ मैटेरियल्स जैसे रणनीतिक संसाधनों पर भी कड़ा रुख अपनाया। यह एक तरह से ट्रंप के ट्रेड वॉर का सीधा और करारा जवाब है, लेकिन इसका असर दुनिया भर के उद्यमियों पर पड़ रहा है, जिससे उनकी कतिपय चिंताएं स्वाभाविक हैं।
समझा जाता है कि ट्रंप की नीतियों का मकसद अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और विदेशी आयात पर निर्भरता कम करना था। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये नीतियां अब अमेरिका पर ही उलटा असर डाल रही हैं। उधर, चीनी मीडिया 'ग्लोबल टाइम्स' ने भी चेतावनी दी है कि ट्रंप के टैरिफ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सकते हैं और वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ा सकते हैं। चूंकि मस्क जैसे दर्जनाधिक अमेरिकी बिजनेसमैन ग्लोबल सप्लाई चैन पर निर्भर हैं, इसलिए वो इसकी चपेट में सबसे पहले आ रहे हैं।
बहरहाल चीन ने अमेरिका के खिलाफ ट्रेड वॉर को आगे बढ़ाते हुए रेयर अर्थ मैटेरियल्स को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया है। क्योंकि रेयर अर्थ एलिमेंट्स को मॉर्डन टेक्नोलॉजी में बहुत जरूरी उत्पाद माना जाता है। चूंकि इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन, सेमीकंडक्टर, आधुनिक हथियार, इलेक्ट्रिक वाहन, रॉकेट, रोबोट, माइक्रोचिप्स, नवीनतम सैन्य उपकरण, पवन टर्बाइन, विमान इंजन, तेल शोधन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों और चिकित्सा उपकरणों आदि में किया जाता है। इसलिए इसके उत्पादकों व निर्यातकों का वैश्विक महत्व जगजाहिर है।
चूंकि चीन इन मैटेरियल्स का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और आपूर्तिकर्ता है, इसलिए उसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ की कमजोर नस दबाते हुए इसके निर्यात पर सख्ती शुरू कर दी है। खास बात यह है कि अब चीन केवल उन कंपनियों को ही ये मैटेरियल्स दे रहा है, जो यह साबित करें कि उनका अमेरिकी सेना से कोई संबंध नहीं है।
इसका मतलब साफ है कि अमेरिका को जो क्षति सोवियत संघ या रूस नहीं पहुंचा पाया, वह क्षति अब चीन पहुंचाएगा। चूंकि अमेरिका और चीन दोनों भारत के साथ दोगलेपन वाला व्यवहार कर रहे हैं, इसलिए भारत को रूस के मित्र और अपने पड़ोसी चीन के साथ कुटिल सम्बन्ध बनाए रखना चाहिए, ताकि रेयर अर्थ मैटेरियल्स की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं आए।
बता दें कि, रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आमतौर पर आरईएम या दुर्लभ पृथ्वी खनिज (आरईई) भी कहा जाता है। ये पृथ्वी में पाए जाने वाले 17 रासायनिक रूप से समान तत्वों का एक समूह होता है, जिनमें- स्कैंडियम, येट्रियल, लैंथेनम, सेरियम, प्रजोडायमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थ्यूलियम, येटरबियम, ल्यूटेटियम जैसे तत्व शामिल होते हैं। अब इनके निर्बाध उत्पादन के बिना कोई भी देश आर्थिक व सैन्य महाशक्ति कदापि नहीं बन सकता है।
यही वजह है कि अमेरिका से बढ़ते कारोबारी व सैन्य टेंशन के बाद चीन की ओर से रेयर अर्थ एलिमेंट्स का निर्यात रोके जाने से भारत समेत दुनिया के कई प्रगतिशील देश टेंशन में आ गए हैं, क्योंकि रेयर अर्थ एलिमेंट्स का उत्पादन करने वाला चीन दुनिया का सबसे बड़ा देश है। इसका निर्यात रुकने से दुनिया के कई देशों में चल रहे प्रोजेक्ट को बड़ा झटका लगेगा।
वहीं, अमेरिका के रक्षा उत्पादों के लिए भी यह एक बड़ा झटका साबित होगा। चूंकि दुनिया का नया थानेदार बनने का स्वप्न देखने वाला चीन अब भस्मासुर बनकर अमेरिका को ही पीछे धकेलने पर आमादा है और इसी नजरिए से उसने यह रणनीतिक कदम उठाया है।
उल्लेखनीय है कि रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) के उत्पादन में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है। इस मामले में पहले नंबर पर चीन और दूसरे पर नंबर पर अमेरिका हैं, जो अब भारत का मुख्य प्रतिद्वंद्वी देश बन चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में रेयर अर्थ एलिमेंट्स का 6.9 मिलियन मीट्रिक टन का भंडार है, जो प्रमुख तौर पर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और केरल जैसे राज्यों में होता है।
हालांकि, भारत में भी दुर्लभ पृथ्वी खनिज ज्यादा दुर्लभ नहीं हैं और यह पृथ्वी की पपड़ी में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। हालांकि, इन तत्वों को अलग करने और इनकी प्रोसेसिंग में काफी समय लगता है। उल्लेखनीय है कि भारत में दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements) संसाधनों को दुनिया में पांचवां सबसे बड़ा संसाधन बताया गया है। वैसे भारतीय रेयर अर्थ संसाधन निम्न ग्रेड वाला है और यह रेडियोधर्मिता से जुड़ा हुआ है जिससे इससे निकालना दीर्घ, जटिल और महंगी प्रक्रिया हो जाती है। इसके अलावा, भारतीय संसाधनों में हल्के रेयर अर्थ एलिमेंट्स (LREE) की बहुलता हैं जबकि हैवी रेयर अर्थ एलिमेंट्स (HREE) निकालने योग्य मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं।
वहीं, मूल्य के संदर्भ में रेयर अर्थ का 80% से अधिक उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा स्थायी चुम्बकों में होता है जिसके लिए चुंबकीय आरईई (Magnetic REE) यानी नियोडिमियम, प्रेसियोडीमियम, डिस्प्रोसियम और टेरबियम की आवश्यकता होती है। ये बहुमूल्य REE हैं क्योंकि ये स्वच्छ ऊर्जा के लक्ष्यों की प्राप्त करने में महत्वपूर्ण तत्व हैं। उच्च मूल्य वाले REE डिस्प्रोसियम और टेरबियम हैं लेकिन भारत में इनकी इतनी मात्रा नहीं है कि इन्हें निकाला जा सके। भारतीय REE भंडारों में केवल नियोडिमियम (Neodymium) और प्रेजोडिमियम (Praseodymium) उपलब्ध हैं और 99.9 प्रतिशत शुद्धता स्तर तक निकाले जा रहे हैं।
चूंकि, चीन ने विगत 4 अप्रैल, 2025 से रेयर अर्थ मटीरियल, खासकर मैग्नेट, पर सख्त निर्यात प्रतिबंध लगा दिए है, जिससे भारत के तेजी से बढ़ते इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) उद्योग समेत अन्य प्रमुख उद्यमों को भी एक मजबूत झटका लगा है। यही वजह है कि चीन के रेयर अर्थ मैग्नेट उत्पादन पर दबदबे के कारण भारत को इसकी आपूर्ति के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा।
ऐसे में भारत के लिए संभावित अन्य साझेदार देशों में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान आदि शामिल हैं। जहां एक ओर ऑस्ट्रेलिया, जो रेयर अर्थ मटीरियल का बड़ा उत्पादक है, उसके पास लिनास रेयर अर्थ्स जैसी कंपनियां हैं, जो कच्चा माल दे सकती हैं। वहीं दूसरी ओर, अमेरिका में कैलिफोर्निया की खदानें और जनरल मोटर्स की टेक्सास में मैग्नेट उत्पादन इकाई से इसकी आपूर्ति की जा सकती है। जबकि तीसरी ओर, जापान, जो रेयर अर्थ प्रोसेसिंग में अग्रणी है, हिताची मेटल्स जैसी कंपनियों के जरिए भारत की जरूरतें पूरी कर सकता है। वहीं, वियतनाम और मलेशिया जैसे उभरते देश भी इसके विकल्प हो सकते हैं, लेकिन उनकी क्षमता सीमित है।
हालांकि, इन देशों से आपूर्ति हासिल करना आसान नहीं है। क्योंकि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका अपनी घरेलू जरूरतों और सहयोगी देशों (जैसे यूरोपीय संघ) को प्राथमिकता देते हैं, जिससे भारत को आपूर्ति सीमित हो सकती है। वहीं, जापान का उत्पादन महंगा है और भारत की मांग को पूरा करने के लिए बड़े निवेश और समय की जरूरत होगी। हालांकि, क्वॉड जैसे ढांचों के जरिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ भू-राजनीतिक सहयोग साझेदारी को आसान बना सकता है, लेकिन भारत को जटिल व्यापार वार्ताओं और पर्यावरण नियमों का पालन करना होगा, क्योंकि रेयर अर्थ मटीरियल को निकालने में काफी प्रदूषण पैदा होता है।
वहीं, जर्मनी जैसे यूरोपीय देश, जो खुद आपूर्ति संकट का सामना कर रहे हैं, तकनीकी विशेषज्ञता दे सकते हैं, लेकिन उनसे जरिए तत्काल मटीरियल आपूर्ति की संभावना कम है। भारत को ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ द्विपक्षीय समझौतों और संयुक्त उद्यमों पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही दीर्घकालिक निर्भरता कम करने के लिए घरेलू प्रोसेसिंग क्षमता में निवेश करना चाहिए।
यही वजह है कि इस मामले में चीन की हेकड़ी पूरी तरह से खत्म करने के लिए अब भारत ने भी अपनी कमर कस ली है। इसलिए मोदी सरकार की नई चाल से चीन का बौखलाना तय है, क्योंकि 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' के उत्पादन पर भी अब भारत की धाक जमने वाली है। आप इसे आत्मनिर्भर भारत की शुरुआत भी कह सकते हैं। दरअसल, दुनिया भर के मोबाइल फोन, मिसाइल, ड्रोन और इलेक्ट्रिक गाड़ियों में जिस ताकत की जरूरत है, वह 17 दुर्लभ खनिजों से आती है। इन्हें ''रेयर अर्थ एलिमेंट्स'' कहते हैं।
बताया जाता है कि अब तक इस क्षेत्र में चीन की बादशाहत थी। लेकिन अब भारत ने भी तय कर लिया है कि चीन की इस हेकड़ी को तोड़ना है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मोदी सरकार ने न सिर्फ इस पर प्लान बनाया बल्कि जमीन पर काम भी शुरू कर दिया है। भारत में 69 लाख टन 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' का भंडार है, जो दुनिया में तीसरे नंबर पर आता है। फिर भी अब तक सिर्फ एक सरकारी कंपनी आईआरईएल (IREL) ही परमाणु और रक्षा के सीमित उपयोग के लिए इस बहुमूल्य उत्पादों का खनन करती थी। जबकि बाकी की खपत के लिए भारत चीन पर निर्भर था। कहना न होगा कि यह कमाल यानी चीन पर निर्भरता यूपीए के दस सालों के शासन का देन है, जिसने राष्ट्रीय दूरदर्शिता की अवहेलना की थी। यही वजह है कि अब यह निर्भरता मोदी सरकार खत्म करने करने जा रही है।
यही वजह है कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु में 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' खनन पर युद्धस्तर पर काम चल रहा है, जिसमें प्राइवेट कंपनियों को भी शामिल किया जा रहा है। भारत सरकार की पीएलआई (PLI) स्कीम और "राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन" इसके लिए ज़बरदस्त इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहे हैं। यही नहीं, भारत ने कज़ाकिस्तान, मंगोलिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से इसमें साझेदारी शुरू कर दी है।
उधर, आईआरईएल (IREL) और बीएआरसी (BARC) ने विशाखापट्टणम में एसएमसीओ (SmCo) और एनडीएफईबी (NdFeB) जैसे शक्तिशाली मैग्नेट्स के लिए प्लांट शुरू किया है। दरअसल, ये वही मैग्नेट्स हैं जो स्मार्टफोन से लेकर फाइटर जेट और सैटेलाइट तक में लगते हैं। गुजरात का ट्राफलगर ग्रुप (Trafalgar Group) साल 2026 से इसका प्रोडक्शन शुरू करेगा। 2027 तक ये देश की 20 प्रतिशत 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' की जरूरतें पूरी करेंगे। वहीं, हैदराबाद की मिडवेस्ट मटेरियल्स कंपनी 2025 से 500 टन एनडीएफईबी (NdFeB) मैग्नेट्स बनाएगी और बाद में 5000 टन तक प्रोडक्शन करेगी। इस प्रकार से भारत अब अपने ईवी (EV) सेक्टर के लिए मोटर, गियर सिस्टम, हेडलाइट्स और विंड टरबाइन में लगने वाले सभी मैग्नेट्स स्वदेशी बनाएगा।
उल्लेखनीय है कि आज चीन 80 प्रतिशत से ज्यादा 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' (REE) की प्रोसेसिंग और 90 प्रतिशत मैग्नेट प्रोडक्शन करता है। लेकिन भारत की नई रणनीति से उसकी नींद उड़ गई है। दरअसल, चीन बार-बार जिस 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' की सप्लाई रोककर दुनिया को डराता रहता है, अब भारत वही चीज़ें अपने दम पर बना रहा है। अपनी योजना के मुताबिक, 2028 तक भारत भी चीन पर जीरो निर्भरता की ओर बढ़ रहा है। इस प्रकार मोदी सरकार की ये दूरदर्शिता भारत को सिर्फ आत्मनिर्भर ही नहीं बनाएगी बल्कि आनेवाले दिनों में वैश्विक 'रेयर अर्थ एलिमेंट्स' का सप्लायर बना देगी।
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