जिलाधिकारी, जौनपुर डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने विभिन्न गौशालाओं का परिभ्रमण किया, गौवंशों की सेवा की
जिलाधिकारी, जौनपुर डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने विभिन्न गौशालाओं का परिभ्रमण किया, गौवंशों की सेवा की
@ कमलेश पांडेय, ब्लॉगर, राजनैतिक दुनिया ब्लॉग
कहावत है कि '"जहां चाह, वहां राह।" यही नहीं, "यथा राजा, तथा प्रजा।" अबतक आपने प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेंद्र मोदी जी के नन्दी प्रेम और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्रीयुत योगी आदित्यनाथ जी के गौवंश प्रेम के बारे में पढ़ा, सुना या देखा होगा। उनसे प्रेरणा लेते हुए जनपद जौनपुर के जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने 8 जून 2025 दिन रविवार को अपने आवास पर स्थित गौशाला सहित जनपद के निराश्रित गौवंशों की सेवा हेतु बनाये गए विभिन्न गौशालाओं, खासकर धर्मापुर गौशाला का परिभ्रमण किया और उन्हें प्रदत्त राजकीय सुविधाओं का जायजा लिया।
इसी क्रम में डॉ सिंह ने अपने शासकीय आवास पर स्थित गौशाला में एक नायाब उदाहरण पेश करते हुए खुद ही हरा चारा की कटाई की और उसे अपनी गाय, बछड़े व नन्दी बाबा को परोसा। इस दौरान पसीने से लथपथ हुए जिलाधिकारी डॉ सिंह ने एक सवाल के जवाब में "राजनैतिक दुनिया" के ब्लॉगर को बताया कि "आज काफी दिनों की प्रशासनिक व्यस्तता के बाद मुझे अपने शासकीय आवास पर स्थित गौशालाओं में अपने प्रिय गाय, बछड़ों व नन्दी से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। उनके हरे चारा, पानी, भूसा, चोकर आदि की जानकारी ली तथा स्वयं मन में एहसास हुआ कि उन्हें हरा चारा अपने हाथों से परोसा जाए।"
उन्होंने आगे बताया कि "इसलिए अपने कठोर मेहनत से उनकी सेवा करने हेतु हरा चारा काटने व उन्हें खिलाने का यह छोटा सा प्रयास मेरे द्वारा किया गया। जैसे कि बचपन में हमलोग अपनी अपनी गायों को हरा चारा काटकर खिलाते थे, उसी प्रकार आज किये गए इस कार्य से बचपन की स्मृतियां पुनर्जीवित हो उठीं। मन में प्रसन्नता है। सभी से अनुरोध है कि कभी कभी अपने बचपन की ओर अवश्य लौटें और गौ माता सहित गौ वंशों की सेवा अवश्य करें।"
ततपश्चात जिलाधिकारी डॉ सिंह ने माननीय मुख्यमंत्री श्रीयुत योगी आदित्यनाथ जी के द्वारा निराश्रित गौवंशों की सेवा हेतु स्थापित धर्मापुर गौशालाओं का निरीक्षण किया और वहां प्रदत्त सरकारी सुविधाओं का भौतिक रूप से जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने पशुओं को चारा व गुड़ आदि भी खिलाया। इससे जनपद के किसानों व पशुपालकों में हर्ष व्याप्त हो गया। उन्हें अपने कार्य की महत्ता का एहसास हुआ। लोगों को लगा कि जब उनका जिलाधिकारी ही गायों की सेवा करते हैं तो उन्हें भी ऐसा करना चाहिए। वहीं, बहुत साधन संपन्न लोग जो अपने यहां गाय रखने की परंपरा को भूल चुके थे, उन्हें भी अपने दरवाजे पर एक गाय रखने की प्रेरणा मिली। वहीं, नगरों-महानगरों के फ्लैट वासी लोगों ने निकटतम गौशालाओं में जाकर गौसेवा किए। सबों ने फोन पर भी एक दूसरे को प्रेरित किया।
वहीं, एक पशु विज्ञानी ने बताया कि गौ और पृथ्वी की सेवा ही सनातन धर्म का मर्म है, क्योंकि ऐसा करते रहने से मानव जीवन की सभी प्रारंभिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। गाय से दूध, और दूध से दही, घी, छाछ, पेड़ा, छेना व रसगुल्ला की प्राप्ति घर पर ही हो जाती है। वहीं गोबर व गौमूत्र की कृषि उपयोगिता व ईंधन महत्ता जगजाहिर है।प्राचीन भारत में गायों यानी गौवंश की संख्या से व्यक्ति विशेष की समृद्धि आंकी जाती थी। इसलिए उन्हें माता की उपाधि दी गई है। उनमें समस्त देवताओं-तीर्थों का वास बताया गया है। कहावत है कि "क्षण क्षण खेती, नित्य दिन गाय, जे न देखे, ओकर जाए।" इसप्रकार गौ सेवा नित्यता का प्रतीक है, जो सभी प्रकार की दैहिक, दैविक व भौतिक सफलता की मूल मर्म समझी जाती है।
आपने देखा होगा कि मकान की जगह पर फ्लैट संस्कृति के विकास से गौ माता के बजाए कुत्ता पालने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है, क्योंकि मनुष्य स्वभाव से ही पशु प्रेमी व पर्यावरण प्रेमी होते हैं। इसलिए अब गौवंश की सेवा की जो अलख डॉ दिनेश चंद्र सिंह ने जगाई है, उससे यदि शहरी दरवाजों पर भी गौ सेवा का भाव बढ़े तो यह मानव स्वास्थ्य के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा। क्योंकि मिलावटी दूध, घी, छेना आदि से मानव स्वास्थ्य बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
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