क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के सियासी झोंके में बुझ जाएगा 'लोजपा आर' का 'राजनीतिक चिराग'?
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क्या बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के सियासी झोंके में बुझ जाएगा 'लोजपा आर' का 'राजनीतिक चिराग'?
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
आगामी अक्टूबर-नवम्बर माह में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कुछ राजनेता जो बयानवीर बनकर सियासी गलतफहमियां परोस रहे हैं, वह यदि उनके दल के ऊपर भारी पड़ गईं तो किसी को हैरत नहीं होगी, क्योंकि जैसी करनी वैसी भरनी ही बिहार की राजनीतिक नियति का स्पष्ट चक्र रहा है। जिस तरह से यहां पर जातिवादी समाजवादी नेता लालू प्रसाद (पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार) और नीतीश कुमार (मौजूदा मुख्यमंत्री, बिहार) ने लंबा शासन किया और आपसी समझदारी से किसी दूसरे की सियासी दाल नहीं गलने दी, वैसा उदाहरण किसी अन्य प्रदेश में कभी नहीं मिला!
यही वजह है कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए "एक अनार सौ बीमार" की तर्ज पर चाहे जितने भी दावे कर लिए जाएं, लेकिन अंततोगत्वा क्या होगा, यह तो चुनाव परिणाम और लालू-नीतीश के इशारे पर उनके भरोसेमंद शागिर्द ही तय करेंगे, जो सूबाई सियासी खेला करने में माहिर समझे जाते हैं। यह अजीबोगरीब है कि कभी लालूप्रसाद के समाजवादी चाणक्य नीतीश कुमार जब पाला बदलकर राष्ट्रवादी चाणक्य हो गए तो फिर लालू प्रसाद व उनके चमत्कारी पुत्र तेजस्वी यादव (पूर्व उपमुख्यमंत्री, बिहार) की भी एक न चलने दी, बल्कि अपने इशारे पर नचाते हुए बिहार के सभी मुख्यमंत्रियों के तमाम रिकॉर्ड ध्वस्त करके अपने नाम कर लिए।
वैसे तो यहां पर मुख्य मुकाबला सत्ताधारी गठबंधन यानी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए), जिसमें लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिन्दुस्तान अवामी मोर्चा (हम), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (आरएलएम) आदि दल भी शामिल हैं, का प्रमुख विपक्षी गठबंधन यानी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस आई के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन (जिसे कभी महागठबंधन तो कभी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के नाम से जाना गया, जिसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा माले), विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) जैसे कुछेक छोटे दल भी शामिल हैं, से है।
लेकिन जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर, जो अधिकांश राजनीतिक दलों के मुख्य चुनावी रणनीतिकार रहे हैं, ने अपने अथक प्रयासों और सियासी सूझबूझ से पूरे चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है और विभिन्न छोटे-बड़े दलों को भी साधकर चल रहे हैं। इससे एनडीए व इंडिया एलायंस के चेहरे पर सियासी चिंता की लकीरें साफ देखी जा सकती हैं। ऐसी उलझी हुई सियासी परिस्थितियों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान के रूप में चर्चित केंद्रीय मंत्री और लोजपा (आर) के नेता चिराग पासवान का यह कहना कि 'अगर पार्टी कहेगी तो बिहार विधानसभा चुनाव लड़ूंगा', उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है। उनके राजनीतिक तेवर से स्पष्ट पता चलता है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की तरह ही इस बार भी वो कोई गड़बड़झाला चुनाव पूर्व या चुनाव पश्चात कर सकते हैं। हालांकि इससे उनका कितना सियासी भला हो पाएगा, वक्त ही बताएगा।
आपको पता होना चाहिए कि भले ही लोजपा के संस्थापक दलित नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. रामविलास पासवान को चुनावी मौसम विज्ञानी तक कहा गया, क्योंकि जिधर वो पाला बदल देते थे, वही गठबंधन केंद्र व राज्य की सत्ता में आरूढ़ हो जाता था, कुछ अपवादों को छोड़कर। लेकिन यह उनकी सियासी अदूरदर्शिता ही कही जाएगी कि उनके बाद उत्तरप्रदेश में अस्तित्व में आई बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की दलित महिला नेत्री सुश्री मायावती ने जहां जोड़ तोड़ करके यूपी को 4 बार दलित मुख्यमंत्री देने में सफल रहीं, वहीं बिहार में लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान एक बार भी मुख्यमंत्री/उपमुख्यमंत्री बनने में कामयाब नहीं हो पाए।
कहना न होगा कि उनके पुत्र चिराग पासवान भी जिस तरह की असमंजस वाली राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं, इससे उनका तो महत्व उनके पिता की भांति ही बना रहेगा, लेकिन बिहार के दलितों को उनका मुख्यमंत्री मिल पाएगा, इस बारे में अनिश्चितता हमेशा बनी रहेगी। वैसे तो नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को एक मौका दिया और दलित मुख्यमंत्री तक बनवाए, लेकिन मांझी की करतूतें भी वो ज्यादा झेल नहीं पाए और उनके सामने पुनर्मुसिको भव: वाली स्थिति पैदा कर दी। यही स्थिति चिराग पासवान के समक्ष भी पैदा की जा सकती है।
आए दिन बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच कभी राजद नेता तेजस्वी यादव और कभी जदयू नेता नीतीश कुमार के साथ सियासी गलबहियां मिलाते हुए जिस तरह से चिराग पासवान देखे जा रहे हैं, उससे खुद भाजपा रणनीतिकार भी अब उनपर ज्यादा भरोसा नहीं कर सकते हैं। यदि उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी की सियासी दुर्गति से चिराग पासवान कुछ सबक ले लें तो यह बिहार की दलित राजनीति के लिए शुभ रहेगा। यहां पर मैं आरसीपी सिंह जैसे फूंके हुए सियासी कारतूस की बात मैं नहीं कर रहा।
दरअसल, इन सभी नेताओं को नीतीश कुमार ने अपनी सियासी जरूरतों के लिहाज से आगे बढ़ाया, और जब ये लोग उनके लिए ही राजनीतिक मुसीबतों का सबब बनने लगे तो असली औकात में ला दिया। ऐसे में यदि चिराग पासवान सियासी समझदारी से काम नहीं लेंगे, तो संभव है कि मायावती की तरह उन्हें भी सियासी बियावान में भटकना पड़े। क्योंकि समय आने पर भाजपा सबको सही सियासी सबक देती है।
देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी बिहार में भाजपा राज लाने के लिए प्रयत्नशील है। ऐसे में नीतीश कुमार, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता उनके लिए महज सियासी मोहरा मात्र हैं, क्योंकि राजद नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, अपने पिता व पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से भी ज्यादा भयानक राजनीति करते प्रतीत होते हैं। इसलिए उनके खिलाफ खड़े किए गए भाजपा के सियासी चक्रब्युह में यदि चिराग पासवान चुनाव पूर्व या चुनाव पश्चात भी बाधक बनते हैं तो निकट भविष्य में उन्हें इसकी भारी सियासी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है।
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्र सरकार में मंत्री चिराग पासवान ने बिहार की राजनीति में एक बड़ा संकेत देते हुए कहा है कि अगर पार्टी तय करती है, तो वह विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अब वह बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं, बशर्ते पार्टी और गठबंधन को इससे लाभ होता हो।
चिराग पासवान ने कहा है कि, 'मेरा राजनीति में आने का कारण सिर्फ बिहार रहा है। मैं दिल्ली में पला-बढ़ा, मुंबई में काम किया, लेकिन जब देखा कि बिहार के लोगों को दूसरे राज्यों में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, तब यह सोच कर राजनीति में आया कि एक ऐसा बिहार बनाना है जहां लोगों को पलायन न करना पड़े।' हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि यह सोच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी रही है, और इस दिशा में दोनों की सोच मिलती है। राजनीतिक टीकाकार बताते हैं कि शायद यह उनकी कीप एंड बैलेंस की नीति हो, ताकि 2020 की तरह ही 2025 में भी उनके रिश्ते नीतीश कुमार से ज्यादा खराब नहीं हो पाएं।
जैसा कि चिराग पासवान ने खुद बताया है कि वह लगातार तीन बार—2014, 2019 और 2024 में सांसद बने और केंद्र में मंत्री भी रहे हैं और हैं भी, लेकिन अब उन्हें लगता है कि दिल्ली में रहकर वह अपने राज्य के लिए उस स्तर पर काम नहीं कर पा रहे हैं, जैसी उनकी मूल सोच रही है। इसलिए अब मुझे पूरी तरह से बिहार में ही रहना होगा, पूरा बिहारी बनकर रहना होगा। बस आपका आशीर्वाद पूर्व की भांति मिलता रहे!'
बहरहाल भले ही चिराग पासवान ने एक सवाल के जवाब में साफ किया कि यह फैसला पार्टी के व्यापक मंथन और सर्वे के बाद ही लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर सर्वे और आंकड़े यह बताते हैं कि उनके चुनाव लड़ने से पार्टी और गठबंधन को लाभ होगा, तो वह निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहेंगे। उन्होंने यह भी स्वीकारा कि पार्टी का नेता जब खुद मैदान में उतरता है तो कार्यकर्ताओं में उत्साह और जोश बढ़ता है, और इससे चुनावी परिणाम भी प्रभावित होते हैं।
वहीं, जब उनसे यह पूछा गया कि क्या वह निजी तौर पर इस बार चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, तो चिराग ने कहा, 'अगर पार्टी कहती है, तो मैं कल ही बिहार जाकर पूरी तरह से लग जाऊंगा। मेरा समर्पण पूरी तरह से बिहार के लिए है। अगर पार्टी की राय होगी कि इससे फायदा होगा, तो मैं विधानसभा चुनाव लड़ूंगा। लेकिन 2025 का चुनाव लडूंगा या 2030 का, ये पार्टी तय करेगी।'
वहीं, महसूस किया जा रहा है कि बिहार की राजनीति में इन दिनों एक दूसरे को सियासी मात देने वाली कई सारी राजनीतिक गतिविधियां देखने के लिए मिल रही है, जिससे सूबे का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। गत दिनों शहीद मनीष कुमार को श्रद्धांजलि देने के बाद चिराग पासवान और तेजस्वी यादव की जो मुलाकात हुई, और अब उस मुलाकात के बाद आरजेडी की ओर से एक पोस्टर जारी किया गया, उससे भी सियासी बवाल आना तय माना जा रहा है। क्योंकि नवादा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और केंद्रीय मंत्री व लोजपा (रामविलास) के सुप्रीमो चिराग पासवान की जो मुलाकात हुई और इस दौरान उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और गर्मजोशी के साथ हाथ भी मिलाया। इसके अलावा हालचाल भी पूछा। इसके भी तरह- तरह के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं।
बता दें कि दोनों की मुलाकात की तस्वीरें सामने आने के बाद से ही कयासों का सिलसिला तेज हो गया और बिहार की राजनीति करवट लेने वाली है, इसे लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया। दरअसल, राजद के उस पोस्टर के जरिये बड़ा निशाना साधा गया और पोस्टर में यह दावा किया गया कि केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के दिल में अब डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को मुख्यमंत्री बनने की चाहत है। ऐसे में सीएम नीतीश कुमार को सतर्क रहने की जरूरत है। इससे यह भी साफ हो गया कि इस बार भी चिराग पासवान भाजपा के दूसरे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के लिए कार्य कर रहे हैं, जिससे नीतीश कुमार के समक्ष 2020 वाली सियासी परिस्थितियां पुनः पैदा हो सकती हैं।
यदि आप उस पोस्टर पर नजर डालेंगे तो यह स्पष्ट दिखेगा कि इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, चिराग पासवान और सम्राट चौधरी की रणनीतिक तस्वीर लगाई गई है। इस प्रकार आरजेडी ने केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पर करारा तंज कस दिया, ताकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पुनः इंडिया महागठबंधन में लाने की पृष्ठभूमि बनाई जा सके। वहीं, पोस्टर में यह भी लिखा गया था कि, “तेजस्वी यादव ही शुद्ध देसी बिहारी हैं, बाकी तो सब बाहरी हैं।” आगे यह भी लिखा गया कि, चिराग पासवान मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे हैं। इसलिए राजनीति का चिराग जलने वाला नहीं है। वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को नसीहत देते हुए लिखा गया कि, “ये लोग आपको धोखा देते आए हैं, बुझ जाईए चाचा। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के मन में भी लड्डू फूट रहा है।”
इसके अलावा पोस्टर में जलते हुए दीप को फूंक मारकर बुझाते हुए दिखाया गया है, जिसके मार्फ़त यह बताने की कोशिश की गई है कि चिराग पासवान मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। वहीं, पोस्टर के जरिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ताकत क्या है, उसे बताई गई है। बता दें कि इस पोस्टर के सामने आने के बाद चिराग पासवान और तेजस्वी यादव को लेकर जो कयासों का सिलसिला जारी था, उस पर अब विराम लग गया है।
बहरहाल, कुल मिलाकर देखा जाए तो, बिहार की सियासत में हलचल बढ़ी हुई है और समय प्रवाह के साथ कई तरह के वाकये भी लगातार देखने के लिए मिल रहे हैं। इससे किसको सियासी लाभ पहुंचेगा और किसको होगा घाटा, यह तो चुनावी वक्त ही बताएगा। ऐसे में पहले कोई भी अनुमान लगाना, जल्दबाजी होगी। वहीं एक आशंका यह भी है कि थोड़ी सी भी राजनीतिक चूक हो गई तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के सियासी झोंके में 'लोजपा आर' का 'राजनीतिक चिराग' बुझ भी सकता है, क्योंकि मिलकर मारने या ऊंची पतंग काटने का नाम ही सियासत है, इससे ज्यादा कुछ नहीं!
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