क्या वैचारिक रूप से सुलगती दुनिया के दो देशों के बीच कोई परमाणु युद्ध होने वाला है? फिर क्या होगा?
क्या वैचारिक रूप से सुलगती दुनिया के दो देशों के बीच कोई परमाणु युद्ध होने वाला है? फिर क्या होगा?
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
एक ओर कश्मीर की समस्या का समुचित समाधान नहीं मिलने से आमने-सामने हुए भारत-पाकिस्तान के बीच अमेरिकी हस्तक्षेप से परमाणु युद्ध का खतरा टला, तो दूसरी ओर फिलिस्तीन त्रासदी झेल रहे इजरायल-ईरान के बीच परमाणु युद्ध की संभावनाओं की अटकलें लगाई जा रही हैं। वहीं नाटो के विस्तार पर लगाम लगाने के लिए शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध में भी परमाणु हथियारों के अनुप्रयोग का खतरा अभी टला नहीं है। इस प्रकार हर जगह पर दुनिया का थानेदार अमेरिका की कोशिश है कि सामरिक युद्ध हो, उसकी कम्पनियों के हथियार खपें, लेकिन परमाणु युद्ध की नौबत नहीं आए, अन्यथा पूरी दुनिया में जनजीवन संकटग्रस्त हो जाएगा।
यही वजह है कि अमेरिकी खुफिया जानकारी के अनुसार बताया गया है कि इजरायल, इस्लामिक षड्यंत्रकर्ता राष्ट्र ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की तैयारी कर रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव पुनः बढ़ गया है। चूंकि यह जानकारी अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन ने गत 20 मई 2025 दिन मंगलवार को दी है, इसलिए इसके रणनीतिक उपयोग से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि टीवी रिपोर्ट में कई अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से यह बात बताई गई है। हालांकि, इसमें यह भी साफ नहीं किया गया है कि इजरायल के नेताओं ने अंतिम फैसला लिया है या नहीं। वहीं अमेरिकी सरकार के अंदर भी इस बात पर मतभेद है कि क्या इजरायल यह हमला करेगा? यदि वह ऐसा करेगा तो फिर अमेरिका उसकी कितनी मदद करेगा?
दरअसल, यह खबर ऐसे वक्त पर आई है जब ट्रंप प्रशासन ईरान के साथ एक समझौता वार्ता कर रहा है जिसमें ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के बदले में अमेरिका उसे अपने परमाणु प्रोग्राम को रोकने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहा है। इसी बीच यह बात लीक हुई है कि अगर अमेरिका, ईरान को अपना परमाणु प्रोग्राम रोकने के लिए राजी नहीं करा पाता तो इजरायल ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर सकता है। इसलिए इस लीक के तरह तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। वहीं ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की संभावना जैसी मुख्य खबर की पुष्टि एक अन्य अमेरिकी न्यूज एजेंसी रॉयटर्स नहीं कर सका है। क्योंकि इस बारे में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, इजरायल दूतावास और इजरायल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है। इससे अटकलों का बाजार गर्म है।
वहीं एक जानकार ने सीएनएन को बताया कि हाल के महीनों में इजरायल के ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की संभावना काफी बढ़ गई है। जानकार ने यह भी कहा है कि अगर अमेरिका और ईरान के बीच कोई समझौता होता है जिसमें ईरान का सारा यूरेनियम नहीं हटाया जाता, तो हमले की संभावना और बढ़ सकती है। बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर एक कूटनीतिक समझौते की कोशिश कर रही है। जबकि खुफिया जानकारी में इजरायल के वरिष्ठ अधिकारियों के सार्वजनिक और निजी बयानों, इजरायल की सैन्य गतिविधियों और हवाई हथियारों की हलचल के आधार पर यह बात सामने आई है। सीएनएन के मुताबिक, अमेरिका ने इजरायल की ओर से हवाई अभ्यास पूरा होने की बात भी देखी है।
उल्लेखनीय है कि गत मंगलवार को ही ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा था कि अमेरिका का यह कहना कि ईरान यूरेनियम संवर्धन रोके, "अत्यधिक और गलत" है। लिहाजा उन्होंने नए परमाणु समझौते की बातचीत पर संदेह जताया। यह स्थिति मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा सकती है, क्योंकि इसी मसले पर दोनों देशों के बीच पहले से ही रिश्ते तनावपूर्ण हैं और अब इस खबर ने चिंता बढ़ा दी है। इसलिए माना जा रहा है कि ईरान पर दबाव बढ़ाने के लिए परमाणु हमला सम्बन्धी खबर प्लांट की गई हो। वहीं, सामरिक मामलों के जानकार बताते हैं कि भले ही इजरायल अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने की प्लानिंग कर रहा है। लेकिन ईरान के अंडरग्राउंड परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना उसके लिए आसान नहीं है। क्योंकि इसके लिए इजरायल के पास फिलहाल वैसे हथियार नहीं हैं। इसलिए यहां भी उसे अमेरिकी मदद की जरूरत पड़ेगी।
गौरतलब है कि ईरान ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किया और 1970 में इसकी पुष्टि की। लेकिन 1979 में सत्ता संभालने वाली मौजूदा इस्लामिक सरकार इस समझौते का विरोध करती आई है। क्योंकि ईरान की मौजूदा सरकार का कहना है कि यह ईरान की पुरानी राजशाही ने किया था, जिससे वो सहमत नहीं है। हालांकि, ईरान परमाणु अप्रसार संधि से बाहर नहीं निकला है, लेकिन 2000 के दशक से ईरान ने एक परमाणु ऊर्जा उत्पादन प्रोग्राम शुरू किया है। ऐसे में कई लोगों का स्पष्ट मानना है कि इस प्रोग्राम के जरिए वो परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है जैसा कि भारत, पाकिस्तान और इजरायल ने किया था।
बता दें कि इन देशों ने नागरिक परमाणु प्रोग्राम के नाम पर ही परमाणु हथियार विकसित कर लिए थे। जबकि ईरान के बारे में माना जाता है कि वह परमाणु हथियारों के लिए दोहरे रास्ते अपना रहा है- पहला, असैन्य परमाणु प्लांट्स से प्लूटोनियम निकालना और दूसरा, ईरान से ही निकाले गए यूरेनियम का संवर्धन करना। यूँ तो इजराइल ने 1960 के दशक में परमाणु हथियार बनाए थे। भारत और पाकिस्तान की तरह, इसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इजरायल ने 1948 में अपनी आजादी के बाद से अपने पड़ोसी अरब देशों से तीन लड़ाइयां की है और उन्हें हराया है। इसलिए परमाणु हथियार बनाने के बाद से ही इजरायल ने पूरी कोशिश की है कि किसी भी अरब देश के पास परमाणु हथियार न हो, जिससे उसके अस्तित्व को खतरा हो। यही वजह है कि इसने 1981 में इराक और 2007 में सीरिया के खिलाफ हवाई हमले किए, ताकि उनके परमाणु रिएक्टरों को नष्ट किया जा सके। क्योंकि इजरायल का मानना था कि ये देश परमाणु हथियार बना सकते हैं।
वहीं, 1979 की क्रांति के बाद से, ईरानी सरकार ने सीधे तौर पर इजरायल को निशाना बनाया है और ईरान के नेताओं ने लगातार इजरायल को नक्शे से मिटा देने की धमकी दी है। जिसके जवाब में इजरायल ने 1980 के दशक से एक सीक्रेट प्रोग्राम शुरू किया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान को परमाणु बम न मिले। इसके तहत इजरायल ने ईरान के परमाणु हथियार वैज्ञानिकों की हत्या की और कंप्यूटर वायरस का इस्तेमाल कर रिएक्टर सेंट्रीफ्यूज को नष्ट कर दिया है। यह बात दीगर है कि इजरायल ने अभी तक अलग-अलग कारणों से ईरानी परमाणु हथियार ठिकानों पर सीधे हमला नहीं किया है। लेकिन हाल की घटनाओं में देखा गया है कि इजरायल दूर स्थित अपने विरोधियों को भी निशाना बना रहा है जिसे देखते हुए संभावना बढ़ जाती है कि वो ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बना सकता है।
दरअसल, 8 अक्टूबर 2023 से इजरायल ने कई ईरानी प्रॉक्सी से लड़ाई लड़ी है- गाजा पट्टी में हमास, दक्षिणी लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ उसने कई लड़ाइयां लड़ी। क्योंकि ईरान ने इजरायल के साथ अप्रत्यक्ष तौर पर लड़ाई के लिए अपने प्रॉक्सी से घेरा था। लेकिन 2024 में दोनों आमने-सामने आ गए। तब इजरायल और ईरान ने लड़ाकू विमानों, ड्रोन और मिसाइलों के जरिए एक-दूसरे के क्षेत्रों पर हमला किया। लिहाजा, इससे यह संकेत मिलता है कि ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम के खिलाफ इजरायल का हमला संभव है। लेकिन कुछ तकनीकी और भौगोलिक मुद्दे हैं जिनके कारण ईरान के परमाणु ढांचे पर इजरायली हमला मुश्किल हो सकता है।
बताया जाता है कि ईरान ने सीरिया और इराक के खिलाफ इजरायल के परमाणु हमलों से एक महत्वपूर्ण सबक सीखा है। वह यह कि ये दोनों हमले सिंगल रिएक्टरों के खिलाफ थे- 1981 में इराक में ओसिरक और 2007 में सीरिया में अल-किबर परमाणु ठिकाने पर इजरायल ने हमले किए थे। इसलिए ईरान का परमाणु प्रोग्राम उसकी जमीन के भीतर फैला हुआ है। देखा जाए तो क्षेत्रफल के हिसाब से ईरान भारत का आधा है जो 16 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। वहीं ईरान के परमाणु इंफ्रास्ट्रक्चर में यूरेनियम खदानें, गैस सेंट्रीफ्यूज जैसी सुविधाएं शामिल हैं जो इसके यूरेनियम को समृद्ध करती हैं। इनमें से दो परमाणु ठिकाने- Fordow and Natanz में यूरेनियम संवर्धन ठिकाने कई मीटर गहरी चट्टान और कंक्रीट के नीचे जमीन के अंदर दबे हुए हैं। इसलिए इन ठिकानों को लेकर सटीक बंकर-बस्टिंग हथियारों से ही निशाना बनाया जा सकता है। इसके लिए उसे अमेरिका के साथ की जरूरत पड़ेगी।
इसके अलावा, चूंकि ईरान, इजरायल की सीमा से 1000 किलोमीटर दूर है। इसलिए इजरायल उसके परमाणु ठिकानों को बर्बाद करने के लिए एक असाधारण और मुश्किल सैन्य मिशन शुरू कर सकता है, जिसमें मुख्य रूप से लड़ाकू जेट शामिल हो सकते हैं। इन लड़ाकू विमानों को हवा में ईंधन भरने और अपने लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए अत्यधिक दूरी तक उड़ान भरने की जरूरत होगी। लेकिन यहां भी एक समस्या है। वह यह कि इजरायल की वायु सेना के पास ईरान के ऐसे परमाणु ठिकानों को नष्ट करने के लिए न तो प्लेटफॉर्म है न ही विशेष हथियार।
इसलिए Fordow and Natanz जैसे अंडरग्राउंड ठिकानों को नष्ट करने के लिए इजरायल को GBU-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनेट्रेटर (एमओपी) जैसी किसी चीज की जरूरत होगी, जिसका वजन 12 टन से ज्यादा भारी और जो 6 मीटर लंबा होता है। बताया जाता है कि एमओपी मिट्टी के 61 मीटर नीचे घुसकर विस्फोट कर सकता है। लेकिन इसे केवल B-52 और B-2 जैसे अमेरिकी भारी बमवर्षक विमान ही ले जा सकते हैं जो इजरायल के पास नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, इजरायल अपने दम पर ईरान के परमाणु हथियार प्रोग्राम को नष्ट नहीं कर सकता, बल्कि उसे अमेरिका की जरूरत होगी। यह भी सम्भव है कि ईरान को काबू में रखने के लिए अमेरिका इजरायल की अंदरूनी मदद इस मामले में कर दे।
ऐसे में उभरता हुआ सवाल है कि क्या इजरायल खुद से ईरान के परमाणु ठिकाने को बर्बाद नहीं कर सकता? तो जवाब होगा कि इजरायली सेना की काबिलीयत किसी से छिपी हुई नहीं है। 1976 में इसने दुनिया के सबसे सैन्य ऑपरेशन्स में से एक को अंजाम दिया। जहां सौ इजरायली कमांडो ने युगांडा के एंटेबे में 102 इजरायली बंधकों को बचाने के लिए 4000 किलोमीटर से ज्यादा की उड़ान भरी। तब बचाव दल ने आतंकवादियों को मारने और जमीन पर युगांडा की वायु सेना के एक चौथाई हिस्से को नष्ट करने के बाद सुरक्षित वापसी की। वहीं 2024 में, इजरायली खुफिया एजेंसी ने लेबनान में एक हजार से ज्यादा वरिष्ठ हिज्बुल्लाह के लोगों को उनके रेडियो पेजर में बम लगाकर मार डाला और सैकड़ों को अपाहिज कर दिया। इससे उसकी सैन्य साख जमी हुयी है।
यही वजह है कि इजरायल, ईरान की अंडरग्राउंड परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने के लिए स्वेदशी एमओपी बना सकता है। मसलन, इजरायली एमओपी को या तो सी-130 हरक्यूलिस विमान या फिर बैलेस्टिक मिसाइल से लॉन्च किया जा सकता है। इनमें से किसी भी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना रिस्की और तकनीकी चुनौतियों से भरा होगा। लेकिन जैसा कि इतिहास हमें दिखाता है, इजरायल ने अतीत में हमेशा इन चुनौतियों का बखूबी सामना किया है और मनमाफिक विजेता रहा है।
कुछ यही कारण है कि लोगबाग सवाल उठा रहे हैं कि क्या वैचारिक रूप से सुलगती दुनिया के दो देशों के बीच कोई परमाणु युद्ध होने वाला है? और यदि ऐसा हुआ तो फिर क्या होगा? क्योंकि अमेरिका-सोवियत संघ (रूस) में जारी शीतयुद्ध की वैचारिक आग अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि अमेरिका-चीन के बीच वैचारिक ज्वाला आए दिन भड़कती रहती है। दोनों एक दूसरे के खिलाफ सटीक रणनीति अख्तियार किये हुए हैं, जबकि अरब देश और भारतीय उपमहाद्वीप इनके लिए भावी जंग का मैदान बना हुआ है। वहीं, पूरे घटनाक्रम पर भारत की जो रणनीति है, वह देर-सबेर अमेरिका-चीन दोनों पर भारी पड़ेगी।
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