स्वामिभक्ति और वफादारी के रोल मॉडल होते हैं श्वान, मानवों को दिलाते हैं असुरक्षा से त्राण

स्वामिभक्ति और वफादारी के रोल मॉडल होते हैं श्वान, मानवों को दिलाते हैं असुरक्षा से त्राण
@ डॉ दिनेश चंद्र सिंह, आईएएस, जिलाधिकारी, जौनपुर, उत्तरप्रदेश

मनुष्य और श्वान यानी कुत्ते के बीच भरोसे का सम्बन्ध आदिकाल से चलता आ रहा है। मानवीय सुरक्षा को मजबूत करने में भी इसके सहयोग से इंकार नहीं किया जा सकता है। पशु विज्ञानी बताते हैं कि स्वामिभक्ति और वफादारी के रोल मॉडल होते हैं श्वान, जो मानवों को दिलाते हैं असुरक्षा से त्राण। यही वजह है कि मैं कौन हूँ, क्यों कहा रहा हूँ, और कुत्ते के बहुआयामी चरित्र के बारे में क्यों लिख रहा हूँ, इस विषय पर यहां चर्चा करना औचित्यपूर्ण है, क्योंकि मां-पिता और गुरु के आशीर्वाद पर बहुत कुछ लिखा हूँ, माता-पिता के प्रेम पर गहराई वाली बात लिखा हूँ। 
                          (सौभाग्यशाली शेरू)

इस बात में कोई दो राय नहीं कि माता-पिता और गुरु के बारे में जितना भी लिखा जाए, जितना भी कहा जाए, वह बेहद कम है और उनकी तुलना या उनके आशीर्वाद की तुलना, उनके उपकार की तुलना किसी अन्य प्राणी से कदापि नहीं की जा सकती है। न ही उनकी तुलना से किसी के बारे में कोई संदेश ही दिया जा सकता है क्योंकि उनका आशीर्वाद और उनकी दुवाएं, असीम हैं, अनंत हैं। निःसन्देह माता-पिता और गुरु की महिमा भी असीम है, अनंत है, दिग्दिगन्त है। उसको किसी भी दृष्टि से लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता है। 
                              (जुनूनी भूरा)

लेकिन आज मैं अत्यंत संवेदनशीलता के साथ यह कह रहा हूँ कि अब मैं उस विलक्षण जीव के बारे में लिख रहा हूँ जिसको (श्वान) कुत्ता कहा जाता है, जो सबके घर का प्रिय होता है। कहना न होगा कि पूरे विश्व की आबादी में यदि सर्वाधिक प्रिय और अपनत्व के साथ किसी पशु-पक्षी को रखा जाता है तो उसमें गौ माता के बाद स्वान का स्थान द्वितीय है। साहित्यिक दृष्टि से कुत्ते के पर्यायवाची शब्द हैं: कुतर, कुकुर, श्वान, नायक, पिल्ला, शिकारी, कुचेला, व्याघ्र, मुर्गाहीन। "कुतर" और "कुकुर" शब्द भी कुत्ता के लिए बहुत प्रयोग किए जाते हैं, जबकि "श्वान" एक और सामान्य पर्यायवाची शब्द है। 
        (भूरे की याद तरोताजा करते हैं ये देशी कुत्ते)

जहां प्रशासनिक हल्के में नायक" शब्द का प्रयोग कभी-कभी कुत्ते के लिए भी किया जाता है, खासकर जब वे किसी विशेष कार्य के लिए प्रशिक्षित किए जाते हैं, जैसे कि पुलिस कुत्ता या गाइड डॉग। वहीं, घरेलू स्तर पर "पिल्ला" शब्द का प्रयोग कुत्ते के बच्चे के लिए किया जाता है, जबकि "शिकारी" शब्द उन कुत्तों के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो शिकार करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं। वहीं "कुचेला" शब्द का प्रयोग कुत्ता के लिए भी किया जा सकता है, खासकर जब वह भूखा और थका हुआ हो। 

कहना न होगा कि स्वान के प्रति पूरे विश्व में लोगों की अलग-अलग अवधारणाएं हैं। अगर हम सनातन धर्म और पौराणिक भारतीय संस्कृति की दृष्टिगत देखें तो भैरो बाबा की सवारी यानी वाहन के रूप में काला श्वान की पूजा-वंदना की व्यवस्था हमारे धर्मशास्त्रों में है। समझा जाता है कि भैरो बाबा भी उग्रता के प्रतीक हैं और काला कुत्ता भी उग्रता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यदि दोनों के प्रति समुचित प्रेम किया जाए तो जिस प्रकार से भैरो बाबा भी अपना अहर्निश आशीर्वाद भक्तजन को प्रदान करते रहते हैं, उसी प्रकार से काला कुत्ता भी बहुत प्रेम करता है और मानवीय जीवन की बहुत सारी बाधाओं का शमन करता रहता है।

लेकिन अगर हम बिना धार्मिक दृष्टि और केवल जनश्रुतियों व व्यवहारिक दृष्टिकोण के आधार पर देखें, सामान्य जनजीवन के आधार पर देखें तो प्रत्येक व्यक्ति जो जीवन में अकेला है उसके अकेलेपन को भरने के लिए एक श्वान के रूप में उसके साथ कोई न कोई रहता है। यद्यपि, मैंने अपने जीवन की सुदीर्घ यात्रा के दौरान कभी श्वान के प्रति प्यार नहीं किया था, क्योंकि जब मैं छोटा था, और जब अपने बचपन के उस यात्रा को देखता हूँ तो स्मरण होता है कि हमारे घर में भूरा नामक देशी कुत्ता हुआ करता था। जिसने मुझे प्यार किया, मेरे परिवार के लोगों को प्यार किया, और मेरे परिवार से लड़ने वाले लोगों का प्रतिरोध किया। 

हालांकि आज मैं दुःख की उस अनुभूति को अभिव्यक्त करते हुए बता रहा हूँ कि उस मेरे प्यारे देशी पालतू कुत्ते को प्रारब्धवश पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। लेकिन वो इतना बहादुर था कि गोली लगने पर भी वो नहीं मरा। चूंकि उसके पीठ पर गोली लगी थी, और अपनी पीठ को कुत्ता खुजा नहीं सकता (यानी चाट नहीं सकता), इसलिए उस गोली का घाव ठीक नहीं हुआ। उस समय, चूंकि वो बहुत छोटा था, और मैं कक्षा 6 में पढ़ता था। इसलिए मेरे पास उपचार के समुचित साधन नहीं थे और मैं आर्थिक रूप से इतना सशक्त भी नहीं था कि उस भूरे का सही उपचार करवा पाता। इसलिए उसके उस जख्म में विभिन्न प्रकार की व्याधियां हुई और धीरे-धीरे, वह मेरा प्यारा भूरा कुत्ता हमारे जीवन से चला गया। 

यही वजह है कि उस भूरे की स्मृति को संजोते हुए मैंने ये प्रण किया था कि मैं कुत्ते के प्रति प्यार नहीं करूंगा। चूंकि देशी कुत्ता जब इतना प्यार करता था, तब मैं बहुत छोटा था। उस समय मैं उसका प्यार समझ भी नहीं पाता था। हालांकि जब मैं पढ़ के आता था तो वह प्यार करता था, बहुत प्यार करता था, मेरे ऊपर चढ़ जाता था। वहीं, सायकिल से जब मैं स्कूल से आता था, तो मेरी आहट से वह इतना प्रफुल्लित और खुश हो जाता था कि मेरे आने की खुशबू से उसका मन बहक जाता था। इसलिए मैंने उसकी मृत्यु के बाद यह निर्णय लिया था कि कुत्ता नहीं पालूंगा, क्योंकि इतने प्यार करने वाले जीव को पालना, पोशना और फिर उसके असमय जाने के दुःख को सहन करना कठिन होता है। बता दें कि कुत्ते की प्राकृतिक आयु महज 12 वर्ष की ही होती है।

एक बात और, सहारनपुर के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट डॉ0 दिनेश चंद्र सिंह ने साल 2024 में पुलिस डॉग स्क्वायड की ईला नामक श्वान की आकस्मिक मृत्यु पर शोक संवेदना प्रकट करने के साथ उनकी सेवा एवं योगदान के प्रति कृतज्ञता के भाव समर्पित किए। तब जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने कहा था कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डॉ विपिन ताड़ा जी के नियंत्रण के अधीन पुलिस डॉग स्क्वायड की बहुत ही होनहर एवं अनुकरणीय, प्रशंसनीय कार्य शैली से अपराध जगत की विभिन्न दुर्लभ घटनाओं की पड़ताल एवं खुलासे में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाली ईला श्वान, जिससे मैं भी कई बार विभिन्न वीवीआईपी विजिट के दौरान मिला था कि आकस्मिक निधन से शोक संवेदना प्रकट करता हूं। इसके साथ उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा कि ईला को अपने श्री चरणों में स्थान दें और भविष्य में उसे बेजुबान से जुबानवान मानव श्रेणी में जन्म दीजिए, ताकि जिससे वो पुनर्जन्म के बाद पुनः  राष्ट्र सेवा में अपनी सेवा दें सकें। इससे स्पष्ट है कि बेजुबान पशु-पक्षियों के प्रति आईएएस अधिकारी डॉ दिनेश चंद्र सिंह का प्रेम जगजाहिर है। उल्लेखनीय है कि इस घटना के बाद भी वो मायूस हो गए थे और कुछ दिनों तक उनके मनोमस्तिष्क पर इसका प्रभाव देखा गया था, जो उस वक्त उनसे बातचीत के दौरान स्पष्ट महसूस होता था।

वहीं, बहुत लंबी यात्रा के पश्चात मैं एक सेवा (प्रशासनिक)  में आया और सेवा के बाद मेरा घर बसने लगा। मेरी बहुत ही प्रिय पत्नी हुईं, बच्चे हुए, बच्चे का संसार बढ़ा, बच्चे धीरे-धीरे बढ़े, बढ़ते गए और उन्होंने एक छोटा-सा शेरू पाल लिया, बिना मुझे अवगत कराए। चूंकि वह विदेशी प्रजाति का था। इसलिए उसके रहने के लिए वातानुकूलित वातावरण होना चाहिए था। तब मैं कानपुर देहात का जिलाधिकारी था। उसके बाद कुछ परिस्थितियों के कारण वहां से हटा। इसी बीच शेरू को लाया गया। मुझे पता ही नहीं चला। जब मेरे सामने उस छोटे से प्यारे से पिल्ले को लाया गया, तब मैंने अनुरोध किया, प्रेम से प्रार्थना की, श्री प्रभु राम जी की, अपने इष्ट हनुमान जी की, कि इस बच्चे को जहां से लाया गया है, वहीं भेज दो। बच्चा वहां गया, लेकिन उसे वहां नहीं रखा गया जहां से लाया गया। फिर ये बात हुई कि बेटा यदि मुझे पुनः उन परिस्थितियों में रहने का अवसर मिलेगा, जहां मैं खुशी पूर्वक आपको रख सकूं तो मैं जरूर आपको रखूंगा। 

इसी अजीबोगरीब मनःस्थिति के दौरान प्रकृति और ईश्वर का विधान और उस शेरू की मेरे ऊपर अनुकम्पा हुई। जिस प्रकार से नन्दी बाबा सारन सिंह की अनुकम्पा थी, उसमें एक ये जीव भी जुड़ गया। और इसने पूरी भक्ति और शक्ति के साथ मुझे आशीर्वाद दिया और उसका यह जीवंत उदाहरण है कि शेरू सिंह आज मेरे साथ बहराइच रहा, सहारनपुर रहा और जौनपुर रहा, और आने वाले समय तक मेरे और मेरे बच्चों के प्रति प्रेम और प्यार का प्रतीक शेरू, जिसने आज तक अपने घर में कभी पेशाब नहीं किया, कभी मलमूत्र नहीं किया, ऐसा जीव शेरू मेरे बच्चे के समान है। और मेरी पत्नी उसको अपने बेटे के समान डांटती- फटकारती हैं, मैं भी डांटता फटकारता हूँ। लेकिन एक प्रकृति और प्राकृतिक जीवन की यात्रा है। वह भी मेरा अंग है। इसलिए शेरू जिंदाबाद। 

कहना न होगा कि शेरू और नन्दी बाबा के आशीर्वाद से हमारी यह यात्रा अभी लंबी चलेगी और शेरू और नन्दी बाबा हमारे साथ रहेंगे। एक भूरा भी इस किरदार में है, जो कानपुर देहात से हमारे साथ है। उसकी भी एक यात्रा है। बहुत प्रिय भूरा, जो मेरे बचपन की यादों को तरोताजा करता है, उतना ही प्यार करता है। आओ हम सब मिलकर जीवों को प्यार करें। जीवों के प्रति घृणा न रखें। उनकी हत्या न करें। जीव हमें सिखाते हैं प्रेम करना। जनकवि कबीरदास जी ने ठीक ही कहा है कि "अमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या। रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या।। इसी प्रकार जीव जंतु से प्रेम करो, पर्यावरण से प्रेम करो, आओ मिलकर वृक्ष लगाएं। जीवन जगत पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं। जय हिंद।

इस प्रकार से स्पष्ट है कि मनुष्य और कुत्ते के बीच संबंध बहुत गहरा और खास होता है। इस पारस्परिक संबंध से  दोनों को लाभ होता है। जहां कुत्ते मनुष्यों के लिए साथी, भावनात्मक समर्थन और व्यावहारिक मदद प्रदान करते हैं, वहीं मनुष्य कुत्तों को देखभाल और प्यार देते हैं। निर्विवाद रूप से मालिक और कुत्ते के बीच का रिश्ता भी महत्वपूर्ण है। एक मजबूत रिश्ता कुत्तों को मनुष्यों के साथ अधिक सुरक्षित और खुश महसूस करने में मदद करता है। मनुष्यों और कुत्तों के बीच साझा गतिविधियों और अनुभवों से उनके बंधन को मजबूत करने में मदद मिलती है। 

सच कहूं तो श्वान का मनुष्य के प्रति स्नेह और उसको पालने के बाद जिस प्रकार से श्वान अपने प्यार से उस परिवार को अभिसिंचित करता है, उसकी तुलना अन्य जीव-जंतुओं से कदापि नहीं की जा सकती है। वाकई उसका प्यार व समर्पण अतुलनीय है। भले ही दुनिया के अलग-अलग देशों में श्वान की अलग-अलग विभिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन उन सबकी अपने मालिक के प्रति जो वफादारी होती है, बहुत ही आस्था भरी कहानी होती है, वह अभिनंदनीय इसलिए है कि कुत्ते मनुष्यों से बहुत प्रेम करते हैं। 

अभी कुछ समय पूर्व आपने देखा होगा कि भारत रत्न रतन टाटा जी के मृत्यु के समय उनके परिजनों के साथ-साथ उनका स्वामिभक्त कुत्ता भी शोक संतप्त था। इसलिए उसी भाव को आधार मानकर निज अनुभव के आधार पर मैंने यह बात लिखी है। इस प्रकार देखा जाए तो कुत्तों को मनुष्यों से प्यार और लगाव होता है, और वे अपने मालिकों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। कुत्ते काफी वफादार होते हैं। इसलिए हमारे देश के गद्दारों यानी चंद रुपयों के लोभ में विदेशी जासूसों के एजेंट्स बनने वाले लोगों को कुत्ते से राष्ट्रीय वफादारी सीखनी चाहिए।

वाकई मनुष्य व कुत्ता का संबंध एक मजबूत लगाव का बंधन है, जो मनुष्यों और कुत्तों को एक साथ खुश रहने में मदद करता है। इसलिए हम सभी को श्वान की इस अनोखी प्रवृति से प्रेरणा लेनी चाहिए और निज राष्ट्र के प्रति, निज समाज के प्रति, निज धर्म के प्रति असंदिग्ध वफादारी रखनी चाहिए। दरअसल इस आलेख में, श्वान के रूप में भूरा और शेरू यहां ऐसे दो पात्र हैं जो ग्रामीण और शहरी अवस्था के दो भिन्न भिन्न समयों की प्रकृति और उसमें ढल जाने के मानवीय व श्वानों के स्वभाव को प्रतिबिंबित करते हैं। प्रायः हर मनुष्य के जीवन में ऐसे दो कोई न कोई पात्र, किसी न किसी रूप में अवश्य आए होंगे। इसलिए यह चरित्र चित्रण सबके मन को छू लेगी, मेरा दृढ़ विश्वास है।

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