आखिर कबतक होते रहेंगे परीक्षाओं के पेपर लीक, जवाब दीजिए
@ डॉली शर्मा, राष्ट्रीय प्रवक्ता, कांग्रेस
यूपी पुलिस भर्ती पेपर लीक मामला सूबे के प्रतिभाशाली युवाओं के साथ विश्वासघात है। यहां वर्ष दर वर्ष ऐसे मामले प्रकाश में आते रहे, लेकिन निठल्ला प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा। देखा जाए तो उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लगभग 7 वर्षीय कार्यकाल में हुआ यह आठवां पेपर लीक मामला है, जिसने प्रतियोगी छात्र-छात्राओं के मनोबल पर नकारात्मक असर डाला है।
ऐसे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि पेपर लीक के दोषी न घर के रहेंगे, न घाट के...महज एक राजनीतिक बयानबाजी है। इससे ज्यादा कुछ नहीं! इसलिए मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि आप स्पष्ट रूप से बताइए कि इससे पहले प्रकाश में आये विभिन्न 7 पेपर लीक मामले के दोषियों के खिलाफ आपने यानी आपके मातहत प्रशासन ने क्या क्या कार्रवाई की, या सिर्फ कार्रवाई के नाम पर महज खाना-पूर्ति की। यदि नहीं तो क्यों नहीं की गई।
मेरी निर्विवाद राय है कि यदि ईमानदारी पूर्वक कार्रवाई की गई होती तो आठवीं बार पेपर लीक करने का दुस्साहस कोई कर ही नहीं सकता था। इसलिए राज्य के युवाओं में बेचैनी व्याप्त है। चर्चा यह भी है कि उत्तरप्रदेश का प्रशासन 'सीएमओ' से नहीं, बल्कि 'पीएमओ' से गाइड होता है। इसलिए प्रशासनिक भ्रष्टाचार अनियंत्रित है। यह कोई राजनीतिक आरोप नहीं, बल्कि व्यवस्थागत हकीकत प्रतीत होता है।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री ईमानदार हो सकते हैं, प्रधानमंत्री भी ईमानदार हो सकते हैं, लेकिन उनके मातहत काम करने वाला सिविल और पुलिस प्रशासन कितना ईमानदार है, इसका पता सूबे में आठवीं बार प्रकाश में आये पेपर लीक मामले से साफ चलता है? इसलिए, छात्र हित में माननीय न्यायालय को इस विषय पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और पूरे प्रकरण में बरती गई प्रशासनिक और अंततः राजनीतिक लापरवाही तय करते हुए पूरी चेन में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए, ताकि कोई न्यायिक नजीर स्थापित हो सके और गलत करने वालों में दहशत व्याप्त रहे।
मेरा स्पष्ट मानना है कि पेपर लीक मामला सबके हित से जुड़ा विषय है। सूबे में ऐसा कोई पढ़ा-लिखा परिवार नहीं होगा, जहां प्रतियोगी छात्र न हों। इसलिए पेपर लीक मामला उनके हक पर डाका डालने के समान है। इसलिए इसके बारे में उत्तरप्रदेश के लोगों को अवश्य जानना समझना चाहिए और तदनुरूप राजनीतिक निर्णय लेना चाहिए। क्योंकि आमचुनाव 2024 सिर पर है।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो जुलाई 2017 का दरोगा भर्ती परीक्षा, फरवरी 2018 का UPPCL परीक्षा, जुलाई 2018 का UPSSSC परीक्षा, सितंबर 2018 का नलकूप ऑपरेटर भर्ती परीक्षा, अगस्त 2021 की बीएड परीक्षा, नवम्बर 2021 की UPTET परीक्षा और मार्च 2022 की यूपी बोर्ड परीक्षा के पेपर लीक हुए, जिसके चलते सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गईं। इन मामलों में चिन्हित हुए लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं, कुछ लोगों पर गैंगस्टर एक्ट तक लगे, लेकिन पेपर लीक करने का मामला नहीं थमा। आखिर क्यों?
शायद इसलिए कि इसके पीछे कोई संगठित अंतरराज्यीय गिरोह काम कर रहा है, जहां तक पुलिस के हाथ अभी नहीं पहुंचे हैं। यही चिंता की बात है। यूपी के अलावा बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि में भी पेपर लीक होते आये हैं, जो भाजपा या एनडीए शासित राज्य हैं। इसलिए शक की सुई उस संगठित गिरोह की ओर घूम रही है, जो पहले सियासी जीत दिलवाती है और उसके बाद पेपर लीक की वजह भी बन जाती है।
मसलन, 'राम राज्य' के नाम पर चल रहे ऐसे 'हराम राज्य' के बारे में जब मैं सोचती हूँ तो रूह कांप जाती है। छात्रों से ज्यादा उनके अभिभावकों का संघर्ष याद आ जाता है। काश! इन लोकतांत्रिक 'राक्षसों' को समय रहते ही जनता पैदल कर देती, अन्यथा आने वाले समय में ये किसी और बड़ी परेशानी की वजह बनेंगे। इसलिए पूरी सावधानी अपेक्षित है। विधायिका और कार्यपालिका को जनहित के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है। अभी नहीं तो कभी नहीं!
(लेखिका गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र की पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी हैं।)
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