पूर्वी भारत के युवा उद्यमियों के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे उद्यमी स्व. अजय कुमार सिंह

पूर्वी भारत के युवा उद्यमियों के लिए सदैव प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे उद्यमी स्व. अजय कुमार सिंह

@ कर्तव्यपथ/कमलेश पांडेय, वरिष्ठ पत्रकार व स्तम्भकार

कहते हैं कि बांस, बांस बांसुरी होती है, हर बांस में बांसुरी नहीं होती है। कुछ ऐसे ही विलक्षण प्रतिभा के स्वामी थे लौह कारोबारी स्व. अजय कुमार सिंह, जिन्हें प्यार से लोग अजय दा भी कहते थे। यदि उन्हें गुदड़ी का लाल कहा जाएगा तो गलत नहीं होगा। अपने बाल सुलभ हुनर और प्रौढ़ प्रतिभा के बल पर उन्होंने वह सब कुछ साकार कर दिखाया, जिससे प्रेरणा पूर्वी भारत खासकर बिहार-झारखंड के युवाओं को लेना चाहिए।

देखा जाए तो जिस समय बिहार तथाकथित जंगलराज के दौर में प्रवेश कर रहा था, उसी समय एक संसाधनहीन युवा अपने जिंदगी के, गांव-समाज व घर-परिवार की बेहतरी के सपने बुन रहा था। इसकी क्रम में कभी बाहुबलियों से अपने कारोबारी हितों की हिफाजत करनी पड़ती थी, तो दूसरी ओर जाति और वर्ग विशेष के पेशे के दांवपेंच को सुलझाते हुए अपने लिए एक जगह भी बनाने की जद्दोजहद चल रही थी।

ऐसी विकट परिस्थितियों में उन्होंने हर वो दांव चले, जो उनके आदमकद बनने के लिए बहुत जरूरी थे। लेकिन जैसे ही तथाकथित सुशासन राज आया, मानो उनके अरमानों को पंख लग गए। यूं तो सफलता की सीढ़ियां चढ़नी उन्होंने तब ही शुरू कर दी, जब बिहार विभाजन के बाद राज्य का कारोबारी परिदृश्य बदला। लेकिन 2005 में दक्षिण बिहार का मुख्यमंत्री बनते ही इस पट्टी के युवाओं को उनकी सही राह और सम्पर्क मिलने लगे।


इसी सुलझी हुई परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए एक कपड़ा कारोबारी, टीएमटी सरिया के क्षेत्र में काफी अव्वल प्रदर्शन करने लगा। इसी बीच 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ईजी टू डूइंग बिजनेस का सूत्र दिया तो अजय सिंह अपने धंधे में अजेय बनने की ओर अग्रसर हो चले। फिर 2019 में पीएम मोदी के लोकल टू वोकल के आह्वान ने अजय टीएमटी में जान फूंक दी। स्थानीय कारोबार विस्तार के इस महामंत्र को पाकर उसके उद्देश्य को सफल बनाने वाले सुप्रसिद्ध लौह उद्यमी और समाजसेवी स्व. अजय कुमार सिंह आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन इस क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। 

खासकर उस बिहार-झारखंड की सरजमीं पर जहां आमलोगों के बीच छोटा हो या बड़ा, नौकरी करने का जुनून सवार रहता है, वहां पर यदि अजय कुमार सिंह ने टीएमटी सरिया प्लांट बैठाए, उसे सफलतापूर्वक चलाये-चलवाए और बिहार-झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा से लेकर नेपाल-भूटान तक अपने टीएमटी उत्पादों की आपूर्ति किये, तो यह बड़ी बात है। उनकी इसी मेहनत से जनपदीय लोहा मंडियों में अजय टीएमटी की एक अपनी पहचान बन गई। 

समझा जाता है कि अपेक्षाकृत कीमत कम होने और माल की गुणवत्ता अधिक होने के चलते अजय टीएमटी की डिमांड बढ़ती गई। उनके द्वारा स्थापित ट्रेडिंग फर्म/कम्पनी तिरुपति ट्रेडर्स, टीएमटी सरिया मैन्युफैक्चरिंग कंपनी अजय स्टील प्राइवेट लिमिटेड और रिटेल एंड होलसेल ट्रेडिंग फर्म/कम्पनी लखु स्टील एंड कंपनी के अजय टीएमटी प्रोडक्ट्स की एक अपनी पहचान विकसित हुई, जिसका उत्पादन इरबा, रांची, झारखंड फैक्ट्री प्लांट में होता है। 

बता दें कि अब इन कम्पनियों के कर्ताधर्ता उनके पुत्र हर्षित सिंह हैं, जो अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्व. अजय कुमार सिंह का जन्म 8 नवंबर 1972 को बिहार प्रान्त के पटना जिला अंतर्गत दीदारगंज थाना क्षेत्र स्थित फत्तेपुर गांव में हुआ था। उन्होंने विपरीत घरेलू परिस्थितियों के बीच न केवल खुद को संवारा, बल्कि जीवन की बुलंदियों को भी चूमे।

ग्रामीण बताते हैं कि स्व. अजय सिंह जब छोटे थे और  सातवीं-आठवीं कक्षा में पढ़ते थे तो वो अन्य बच्चों की तरह समय गुजारने की बजाय पड़ोस की दुकान में काम करते थे। जैसे जैसे उनकी पढ़ाई बढ़ती गई, वैसे वैसे ही उन्होंने  पार्ट टाइम नौकरी करने की तरकीब भी बदली। उनको स्थायित्व कपड़े के एक कारोबारी के यहां मिली। उनके साथ काम करके उन्होंने जीवन में खुद से कमाया और अपनी मैट्रिक और इंटर की पढ़ाई पूरी की। 
फिर उन्होंने नौकरी को ही अपनी आजीविका का स्थायी साधन बनाया और अपनी स्नातक यानी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय, पटना से पूरी की। लोग बताते हैं कि उनका परिवार भरा-पूरा था, लेकिन किसी ने उनका साथ पढ़ाई से लेकर काम-धंधे को जोड़ने में नहीं दिया। यहां तक कि उनकी पैतृक संपत्ति की हिस्सेदारी में भी तरह तरह के लफड़े किये। स्पष्ट है कि अपने जीवन में उन्होंने जो कुछ भी किया, अपने दम पर किया। पढ़ाई व नौकरी करते हुए ही उन्होंने अपने बिजनेस को स्थापित किया।

 इससे साफ है कि सेल्फ मेड इंसान रहे अजय कुमार सिंह। उनके पुत्र हर्षित कुमार सिंह बताते हैं कि उन्होंने कपड़े के होलसेल का कारोबार बिहार-झारखंड के डिस्ट्रीब्यूटर के रूप में शुरू किया। पहले कपड़े के क्षेत्र में उन्होंने अपना नाम खिलाया। इसके बाद वर्ष 2007-08 में उन्होंने अपने एक मित्र के सुझाव पर टीएमटी सरिया की ट्रेडिंग का कार्य स्टार्ट किया और कुछ दिनों बाद ही अपने सूझ-बूझ से सरिया उत्पादन फैक्ट्री के मालिक बन गए। अब टीएमटी उत्पादन व विपणन के क्षेत्र में उनकी एक अपनी साख स्थापित हो गई और देखते ही देखते वह इस कारोबार के एक मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित हो गए। 

ऐसा इसलिए सम्भव हुआ, क्योंकि वो हरेक परिस्थितियों में बहुत ही संयम से काम लेते थे। उनमें उतावलापन बिल्कुल ही नहीं था। इसी बीच पटना महानगर के गोपालपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत रामधनीपुर, शाहपुर, जगनपुरा में उन्होंने अपना आवासीय ठिकाना बना लिया और यहीं से देश-विदेश में अपना कारोबार बढ़ाने के सपने बुनने लगे, जो उनकी कठिन मेहनत व लगन से सच्चाई में तब्दील होते गए। 

उनके मित्रगण बताते हैं कि बिहार-झारखंड के कई नेताओं-अधिकारियों और समाज के सम्भ्रांत लोगों से उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध थे। वह इसलिए कि सबके सुख-दुःख में तन-मन-धन के साथ खड़े रहने वाले व्यक्ति थे। 

हरेक कारोबारी पिता का एक सपना होता है कि वह अपनी पुत्री की शादी किसी सरकारी अधिकारी से करे, चाहे आवभगत में जो भी खर्च हो जाये। उन्होंने अपने इस सपने को काफी लगन व मेहनत से पूरा किया। अपनी बड़ी पुत्री अंजलि सिंह की शादी उन्होंने जीएसटी अधिकारी अभिजीत सिंह के साथ बड़े ही धूमधाम से की। जिसमें पटना के नेताओं, अधिकारियों और कारोबारियों ने भी शिरकत की और वर-वधु को आशीर्वाद प्रदान किया।


इसी बीच वह अवसर भी आया जब उन्होंने अपने सबसे छोटे और इकलौता पुत्र हर्षित सिंह को भी अपने धंधे का गुर सिखाना शुरू कर दिया और देखते ही देखते उनका पुत्र अपने पिता के कारोबार को संभाल लिया। जानकार बताते हैं कि अजय सिंह और हर्षित सिंह रिश्ते में बाप-बेटे थे, जबकि उनका आपसी रिश्ता दोस्ती से भी बढ़कर था। लोग सगर्व कहा करते थे कि ये दोनों बाप-बेटा कम, भाई/दोस्त की तरह ज्यादा लगते हैं। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अपने पुत्र को अपना सारा पेशेवर गुण सीखा दिया। और बहुत कुछ अपडेट भी करते रहते थे।

लेकिन विधि को तो कुछ और ही मंजूर था। अचानक उन्हें ब्लड कैंसर की बीमारी निकल गई और देश-प्रदेश के विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों द्वारा हुए इलाज का भी उनपर कोई सार्थक असर नहीं हुआ। अंततः 3 नवंबर 2021 को उन्होंने नियति के समक्ष हार मान ली और देवलोक की अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गए। अपने पीछे उन्होंने भरा-पूरा परिवार और मित्र समाज छोड़ रखा है, जिनमें पटना जनपद अंतर्गत बाढ़ राणा बीघा निवासी उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रंजू देवी-कुशल गृहिणी, बड़ी पुत्री श्रीमती अंजलि सिंह-बीएड, बड़े दामाद श्री अभिजीत सिंह-जीएसटी ऑफिसर, मंझली पुत्री सुश्री रुचि सिंह-बीएड और सबसे छोटे पुत्र लौह उद्यमी एवं पत्रकार हर्षित सिंह के अलावा दिलअजीज मित्रों में श्री महेश सिंह उर्फ नेता जी, श्री शैलेश कुमार सिंह-अधिवक्ता, मनोज सिंह-बचपन के सहपाठी, मोहन जायसवाल-व्यापारिक सम्बन्ध, तेजनारायण सिंह-पड़ोसी आदि प्रमुख हैं।

लोग बताते हैं कि स्व. अजय सिंह के अकस्मात गुजरने के बाद उनके पुत्र हर्षित सिंह ने अपने पिता से अर्जित अनुभव की पूंजी के सहारे आगे बढ़ रहे हैं। स्व. अजय सिंह के इलाज में पूरे परिवार के व्यस्त रहने के चलते जो बिजनेस लड़खड़ाया, उसे अब हर्षित सिंह ने संभाल लिया है। क्योंकि स्व. अजय सिंह अपने पुत्र को हमेशा साथ रखते थे ताकि वह अपने धंधे के हरेक गुण-अवगुण से वाकिफ रहे और निर्णय लेने में उनकी मदद करे। उन्होंने अपने पुत्र हर्षित सिंह को हरेक परिस्थितियों से लड़ना भी सिखाया, जो अब उनके काम आ रहा है।


लोग-बाग बताते हैं कि वो अपने घर-परिवार पर, गांव-समाज पर कभी किसी चीज की आंच नहीं आने देते थे। घर से लेकर कारोबार तक एडमिनिस्ट्रेशन के मामले में बहुत टाइट थे। यदि वो किसी से दोस्ती करते थे तो उसके लिए अपनी जान देने को भी तैयार रहते थे। अपने दुश्मनों से भी मित्रता की गुंजाइश उन्होंने सदैव बनाकर रखी। अपनी इसी चाह में वो कई बार धोखा भी खाए, लेकिन धोखेबाज लोगों को भी माफ कर देना उनका बड़पन्न था। कमजोर लोगों के भी वो सदैव हितैषी बने रहे और आर्थिक तौर पर भी बहुतों की मदद की। वह हमेशा मस्तमौला बनकर जीना, रहना पसंद करते थे। वह इतने निडर थे कि विकट परिस्थितियों के बीच भी घबराते नहीं थे। उन्होंने कभी भी किसी स्टाफ को स्टाफ नहीं समझा, चाहे वो ड्राइवर हो, सेल्समैन हो, सेल्स ऑफिसर हो या मैनेजर हो। आड़े वक्त पर वह दिल खोलकर सबकी मदद करते रहते थे। अपने स्टाफ और कर्मचारियों को वह अपने परिवार का अंग समझते और बच्चे की तरह उनकी जरूरतों का ख्याल रखते थे।

एक बात और, उन्होंने कभी भी अपने पुत्र-पुत्रियों के बीच कोई फर्क नहीं रखा। सब कोई उनके लिए एक समान था। फिर भी उनको सबसे ज्यादा प्रेम अपने इकलौता पुत्र से ही था। जब उनके आखिरी सांस लेने की घड़ी करीब आई तो अपने इमरजेंसी वार्ड में उन्होंने डॉक्टर से कहकर अपने पुत्र हर्षित सिंह को अंदर बुलवाया और उसका हाथ पकड़कर हंसते हुए कहा कि "अब सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। तुम सब कर लोगे।" बस इतना कहकर ही वो इस पुण्यलोक को अलविदा कर गए। 

हर्षित सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने बहुतेरे सपने पूरे किये, लेकिन विधि की विडंबना वश उनके कुछ सपने अधूरे रह गए, जिन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी अब हमारे नाजुक कंधों पर आ पड़ी है, जिसे उन्हीं के आशीर्वाद से और ईश्वर की अनुकम्पा से पुरा करने में जुटा हुआ हूँ।

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