यक्ष प्रश्न: आखिर देशवासियों के अंदर कैसे जगाया जाएगा स्वदेशी के संकल्प का भाव?
यक्ष प्रश्न: आखिर देशवासियों के अंदर कैसे जगाया जाएगा स्वदेशी के संकल्प का भाव?
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक
भारतवासियों के लिए, खासकर यहां के सत्ता प्रतिष्ठान के लिए, स्वदेशी या विदेशी वस्तुओं को उपयोग में लाए जाने या फिर उसका बहिष्कार किये जाने का सियासी आह्वान कोई नई बात नहीं है, क्योंकि सर्वप्रथम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने ही आजादी की लड़ाई को धार देने के लिए और अंग्रेजों की आर्थिक कमर तोड़ने के लिए ऐसा प्रासंगिक आह्वान किये जाने की शुरुआत की थी। बाद में यह आह्वान भी एक सियासी हथकंडा बन गया।
वहीं, 1990 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और भूमंडलीकरण के बाद आरएसएस-भाजपा के स्वदेशी आंदोलन का जो हश्र हुआ और इनकी ही बाजपेयी-मोदी सरकारों के द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से जो प्रेम दिखाया गया, वह भी कोई पुरानी बात नहीं है। लेकिन मौजूदा दौर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बार-बार 'लोकल फ़ॉर वोकल' की बात करते हैं तो थोड़ा गम्भीर होना स्वाभाविक है।
इसलिए सवाल उठता है कि आखिर देशवासियों के अंदर कैसे स्वदेशी के संकल्प का भाव जगाया जाएगा, यक्ष प्रश्न है। देखा जाए तो डोकलाम और गलवान में चीनी सैनिकों के साथ हुए भारतीय सैनिकों के संघर्ष के बाद कभी भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम चलाई-चलवाई जाती है तो कभी पहलगाम आतंकी हमले के बाद चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान का साथ देने पर तुर्किये की वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम चलाई-चलवाई जाती है।
लेकिन जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के खिलाफ मर्यादा विहीन आर्थिक टिप्पणी करते हैं, यहां की दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को डेड इकॉनमी बताते हैं, भारत के ऊपर सबसे ज्यादा 25 प्रतिशत टैरिफ लगाते हैं, भारत को पिछाड़ने के लिए ओछी वैश्विक बातें करते हैं, तो हमलोग अमेरिकी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम न चलाकर सिर्फ इतना कहते हैं कि भारत के लोग सिर्फ उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें, जो भारतीयों के पसीने से बनी हो। यहां के दुकानदार भी देशी वस्तुएं ही बेचें।
इसलिए यहां पर सवाल उठाना स्वाभाविक है कि ऐसा दोहरा मापदंड क्यों? आखिर क्या है इसके पीछे की लाचारी? देशवासियों को जानने-समझने का हक है।
वहीं, स्वदेशी या विदेशी वस्तुओं के उपयोग करने या फिर उसका बहिष्कार करने का यह चक्कर-घमचक्कर तो यहां के गरीबों-निम्न मध्यमवर्ग की समझ से परे है, लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े अभिजात्य वर्गों या उच्च मध्यम वर्ग की इस बाबत पसंद-नापसंद देश के लिए बहुत मायने रखती है, क्योंकि उनकी क्रय शक्ति औसत से बहुत ज्यादा होती है।
सच कहूं तो देश और समाज का यही वह तबका है जो देशी वस्तुओं का उत्पादन करता है और विदेशी वस्तुओं का आयात करता है। यह वर्ग हर चीज में अपना लाभ देखता है। यही वर्ग विदेशी कनेक्शन भी रखता है। ब्रांडेड और उच्च गुणवत्ता वाली कीमती विदेशी वस्तुओं का असली उपभोक्ता भी यही होता है, क्योंकि उसे ही अपना स्टेटस सिंबल समझता है। क्या यह वर्ग प्रधानमंत्री के आह्वान की कद्र करेगा?
इसलिए सवाल यही उठता है कि हमारे देश के नेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों और सफल पेशेवरों के बीच प्रधानमंत्री की अपील अपनी कितनी जगह बना पाती है, देखना दिलचस्प होगा। जब आप इनकी कोठियों पर नजर दौड़ाएंगे, वाहनों को देखेंगे, लाइफ स्टाइल पर नजर डालेंगे, तो इनका विदेशी वस्तु प्रेम सहज ही उभर आएगा।
इसलिए यह बेहद जरूरी है कि ब्रेक के बाद होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के मर्म को समझना होगा, इसके आर्थिक व रणनीतिक मायने समझने होंगे। हमारी आर्थिक प्रगति और सैन्य सुरक्षा पर आपकी प्रवृत्ति का कितना असर पड़ेगा, यह समझना होगा। वहीं, जो लोग जानबूझकर नहीं समझ पा रहे, उन्हें कानून बनाकर समझाने के प्रयास करने होंगे।
दरअसल, विश्व की अस्थिर अर्थव्यवस्था के प्रति चिंता जताते हुये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत शनिवार को अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में कहा कि दुनिया के देश अपने- अपने हितों पर ध्यान दे रहे हैं। भारत भी अगले एक-डेढ़ साल में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बनने जा रहा है। इसलिए भारत को भी अपने आर्थिक हितों को लेकर सजग रहना ही होगा। उन्होंने यह भी कहा कि, हमारे किसान, हमारे लघु उदयोग, हमारे नौजवानों के रोजगार और इनका हित हमारे लिये सबसे ऊपर है। सरकार इस दिशा में हर प्रयास कर रही है।
उन्होंने आगे फिर कहा कि इसलिए ठान लें कि अब हम उन चीजों को, वस्तुओं को खरीदेंगे, जिसे बनाने में किसी न किसी भारतीय का पसीना बहा है। वह वस्तु भारत के लोगों ने बनाई है। भारत के लोगों के कौशल, पसीने से बनी है। यह जिम्मेदारी हर देशवासी को लेनी होगी कि घर में जो भी सामान आएगा, वह स्वदेशी ही होगा। वहीं, पीएम मोदी ने दुकानदारों से भी कहा कि आपलोग तय कीजिए कि सिर्फ स्वदेशी माल ही बेचेंगे। इस प्रकार प्रधानमंत्री ने करीब 53 मिनट के अपने भाषण के अंतिम छह मिनट में भारत की अर्थव्यवस्था और स्वदेशी का उल्लेख किया।
मोदी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, ''आज जब हम आर्थिक प्रगति की बात कर रहे है, तो मैं आपका ध्यान वैश्विक हालात पर ले जाना चाहता हूं। आज दुनिया की अर्थव्यवस्था कई आशंकाओं से गुजर रही हैं। अस्थिरता का माहौल है। ऐसे में दुनिया के देश अपने-अपने हितों पर ध्यान दे रहे है।'' मोदी ने आगे कहा, ''भारत भी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। इसलिये भारत को भी अपने आर्थिक हितों को लेकर सजग रहना ही है। हमारे किसान, हमारे लघु उदयोग, हमारे नौजवानों के रोजगार, इनका हित हमारे लिए सर्वोपरि हैं। सरकार इस दिशा में हर प्रयास कर रही है। लेकिन देश के नागरिक के रूप में भी हमारे कुछ दायित्व है। यह बात सिर्फ मोदी नहीं, हिंदुस्तान के हर व्यक्ति को दिन में हर पल बोलते रहना चाहिये।''
उन्होंने यहां तक कहा, ''कोई भी राजनीतिक दल हो, कोई भी राजनेता हो, उसे अपने संकोच को छोड़कर के देशहित में देशवासियों के अंदर स्वदेशी के संकल्प का भाव जगाना होगा।'' प्रधानमंत्री ने कहा, ''हम उन वस्तुओं को खरीदेंगे, जिसे बनाने में किसी न किसी भारतीय का पसीना बहा है। वह वस्तु भारत के लोगों ने बनाई है, भारत के लोगों के कौशल से बनी है। भारत के लोगों के पसीने से बनी है। हमें 'वोकल फार लोकल' मंत्र को अपनाना होगा।'' मोदी ने कहा, ''हमारे घर में जो भी नया सामान आयेगा, वह स्वदेशी ही होगा। यह जिम्मेदारी हर देशवासी को लेनी होगी।''
उन्होंने व्यापारियों से स्वदेशी माल ही बेचने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, ''स्वदेशी माल बेचने का संकल्प भी देश की सच्ची सेवा है। त्योहारों के महीने आने वाले हैं। उसके बाद शादियों का सीजन है। इस दौरान स्वदेशी वस्तुओं को ही खरीदना चाहिए।'' आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही मेक इन इंडिया का नारा दिया और बाद में उसी में जोड़ दिया मेक फ़ॉर द वर्ल्ड। कोरोना महामारी के समय जिस तरह से उन्होंने डिजिटलीकरण को प्रश्रय दिलवाया, इससे अमेरिकी कम्पनियां लाभान्वित हुईं।
यदि आप अपने आसपास देखेंगे तो पाएंगे कि जीवन के हर क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कंपनियां दस्तक दे चुकी हैं। वो हमसे भारी लाभ कमा चुकी हैं। हमारा प्रशासन इतना निकम्मा है कि वह भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में भी असमर्थ है। उसने विदेशी कम्पनियों/उद्यमियों को विभिन्न छूटें दे रखी हैं, क्योंकि उसे अपनी सुविधा शुल्क से मतलब है, अन्य बातें तो रोजमर्रा की बातें हैं। आया राम, गया राम, सब चलता है। सबको पता है कि कोई भी सरकार प्रशासनिक सहयोग से ही चल पाती है। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री की चिंता मायने रखती है।
हमें यह समझना होगा कि भारत से चीन की शत्रुता जगजाहिर है। उसपर हमारी कारोबारी निर्भरता भी किसी से छिपी हुई नहीं है। चीन भारत से भारी मुनाफा कमा रहा है और उन लाभों से सीमा पर हमारे सैनिकों की परेशानियों का सबब बना हुआ है। वहीं, अमेरिका से भारत को कारोबारी मुनाफा है। लेकिन उसकी उलजुलूल शर्तें भारत के दूरगामी वैश्विक हितों के खिलाफ हैं। यूरोपीय देशों से हमारे रिश्ते बेहतर हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका-रूस की प्रतिद्वंद्विता इस मार्ग में सबसे बाधक है। चूंकि रूस भारत का भरोसेमंद वैश्विक पार्टनर है। इसलिए उसकी कीमत पर कोई समझौता हो नहीं सकता।
ऐसे में यदि भारत को अमेरिका और चीन की क्षुद्र नीतियों से निपटना है, पड़ोसी पाकिस्तान-बंगलादेश के चक्कर में भारत से रार ठानने वाले इस्लामिक देशों की क्रूर नीतियों से निपटना है तो आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में भारत को निरंतर मजबूती हासिल करनी होगी। यह तभी सम्भव होगा जब हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिका, चीन व जर्मनी से निरंतर होड़ करेगी। इसलिए भारतीयों का अपनी सरकार के साथ खड़ा होना जरूरी है।
भारत के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यहां की लोकतांत्रिक मूर्खता है, जिसकी नींव पश्चिमी देशों की देखा देखी डाली गई थी। यहां के राजनीतिक दल जाति, सम्प्रदाय व क्षेत्र के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ विषबमन करते हैं, जिससे राष्ट्रीय भावना कुंद होती है। विदेशी ताकतें इन्हें ही अपना हथियार बनाती हैं। ये लोग हमारी अर्थव्यवस्था के भी दुश्मन हैं, क्योंकि भारतीयों को परस्पर भड़काते हैं और अशांति फैलाते हैं। सकारात्मक विपक्ष की भूमिका यहां नदारत है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह आह्वान मायने रखता है। हम सभी को उसपर चलने का प्रयत्न करना चाहिए। देशवासियों के अंदर स्वदेशी के संकल्प का भाव कैसे जगाया जाएगा, इस बारे में समवेत प्रयत्न करना चाहिए। इससे भारत सुखी और सशक्त होगा।
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