राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा सर्जियो गोर को भारत में नया अमेरिकी राजदूत नामित किए जाने के कूटनीतिक मायने


राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सर्जियो गोर को भारत में नया अमेरिकी राजदूत नामित किए जाने के कूटनीतिक मायने
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने खास सिपहसालार सर्जियो गोर को भारत में अमेरिका का नया राजदूत नामित किया है। पिछले ढाई दशकों से निरंतर मजबूत होने के बाद एक बार फिर से भारत-अमेरिका सम्बन्ध पुनः उसी चौराहे पर पहुंच चुके हैं, जहां से 20वीं सदी के अंतिम दशक में प्रारंभ हुए थे। इसलिए यह नियुक्ति केवल कूटनीतिक बदलाव भर नहीं मानी जा सकती है, बल्कि इस बात के संकेत दे रही है कि आने वाले समय में भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय रिश्तों का चेहरा और चरित्र दोनों बदलने वाला है। ऐसा इसलिए कि सर्जियो गोर की छवि ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा के कट्टर समर्थक और राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के भरोसेमंद सहयोगी के रूप में रही है। इससे यह स्पष्ट है कि अमेरिका अब भारत के साथ अपने रिश्तों को ज्यादा लेन-देन आधारित कूटनीति के नजरिए से देखेगा। 

यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक जगत में इस बात की चर्चा तेज हो चुकी है कि पहले 'शत्रु' को 'मित्र' बनाकर और अब 'मित्र' को 'शत्रु' ठहराकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंफ आखिर भारत को क्‍या संदेश देना चाहते हैं? जिस तरह से उन्होंने भारत को एक नया अमेरिकी राजदूत दिया है, उसके राजनयिक मायने क्या हैं? क्या दोनों के द्विपक्षीय संबंध सुधरेंगे या फिर उनके बीच की दिखाई पड़ी ताजा गर्मी और बढ़ेगी? ऐसा इसलिए कि जब से डोनाल्‍ड ट्रंप ने दूसरी बार  अमेरिका की सत्‍ता संभाली है, अपने सियासी, आर्थिक और सैन्य कूटनीतिक एजेंडे को पूरे रफ्तार से लागू करने में जुटे हुए हैं। इसी सिलसिले में कभी मोदी समर्थक और कभी हिन्दू समर्थक छवि बनाने वाले ट्रंफ अब भारत से भी बेवजह बिदक चुके हैं। यही वजह है कि उनकी ओर से देश दर देश छेड़े गए टैरिफ वॉर से पूरी दुनिया में हलचल मची हुई है।

डॉनल्ड ट्रंफ ने भारत पर रूस का सहयोगी होने और चीन के करीब जाकर उन्हें लाभान्वित करने का आरोप लगाया है। इसलिए उन्होंने अब द्विपक्षीय सहयोग के बजाय भारत के साथ एकतरफा असहयोग का रास्ता चुना है। यही वजह है कि पिछले दिनों जब उन्होंने व्हाइट हाउस के अपने हार्डकोर वफादार सहयोगी सर्जियो गोर को भारत भेजने का फैसला लिया, तो उसके तरह तरह के मायने निकाले जाने लगे। कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी नियुक्ति का साफ साफ अर्थ है कि अमेरिकी कूटनीति में दीर्घावधि (लॉन्‍ग टर्म) साझेदारी की जगह तात्कालिक अमेरिकी हितों को प्राथमिकता मिलेगी, जो भारत के लिए एक नई चुनौती होगी, क्योंकि अब वे वार्ता में सहयोग से ज्यादा दबाव और शर्तें बनाने-बढ़ाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इससे साफ है कि लेन-देन आधारित कूटनीति का नया दौर शुरू होगा, जिसके लिए मोदी सरकार दुनियाभर में मशहूर हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने हाल ही में भारतीय टेक्सटाइल, रत्न-आभूषण और तेल से जुड़े उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की है। जिससे भारत के प्रमुख निर्यात क्षेत्रों समेत लाखों नौकरियों पर आसन्न खतरा उतपन्न हो गया है। इस बारे में वैश्विक मामलों जानकार बताते हैं कि अमेरिका का यह कदम केवल आर्थिक नहीं बल्कि भूराजनीतिक रणनीतिक दबाव का हिस्सा है, जिससे भारत को रूस और चीन के साथ उसके बढ़ते व्यापार पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया जा सके। लेकिनमोदी सरकार का जो मूड दिखाई पड़ रहा है, उससे  इसका उलटा असर भी हो सकता है। क्योंकि भारत ने भी हाल के महीनों में मॉस्को और बीजिंग के साथ अपने संबंध और मजबूत किए हैं, जो अमेरिकी प्रभाव को कमजोर कर सकते हैं। इससे ट्रंफ की अंतरराष्ट्रीय चुनौतियां बढ़ सकती हैं। वहीं ब्रिक्स मजबूत हुआ तो डॉलर डिप्लोमेसी भी इतिहास के कब्रगाह में दफन हो सकती है। ऐसा इसलिए कि अमेरिकी टैरिफ का दबाव बढ़ने के बाद भारत कोई आर्थिक जोखिम नहीं उठाएगा, जिससे भारत को झुकाने के ट्रंफ के अरमान धरे के धरे रह जाएंगे।

अंतरराष्ट्रीय जगत में चर्चा है कि सर्जियो गोर को राजदूत के साथ-साथ विशेष दूत की भूमिका भी सौंपी गई है, ताकि भारत की भू-राजनीतिक दिशा को भी अमेरिकी हितों के अनुरूप ढाला जा सके। लेकिन कूटनीतिक विश्लेषकों का स्पष्ट कहना है कि भारत के खिलाफ ट्रंफ की आक्रामक कूटनीतिक रणनीति से उल्टा असर भी हो सकता है और भारत, बदलती वैश्विक परिस्थितियों के दृष्टिगत रूस और चीन की ओर और ज्यादा झुक सकता है। इससे जहां भारतीय गुटनिरपेक्षता को मजबूती मिलेगी, वहीं दक्षिण एशिया में अमेरिकी प्रभाव के सीमित होते जाने का एक नया खतरा मंडरा रहा है। खास बात यह कि जिस पाकिस्तान-बंगलादेश के सहारे अमेरिका भारत को नाराज कर रहा है, उसपर चीन की पकड़ मजबूत हो चुकी है और भारत भी यदि चीन को शह दे देगा तो एशिया से अमेरिकी पांव अफगानिस्तान की तरह ही उखड़ जाएंगे और ट्रंफ की सारी हैकड़ी धरी की धरी रह जायेगी। इसलिए जियो-पॉलिटिकल बैलेंस बनाने के चक्कर में भारत को नाराज करना उन्हें महंगा पड़ सकता है।

समझा जा रहा है कि इन्हीं बातों पर गौर करते हुए अमेरिका ने भारत को अपना सर्वश्रेष्ठ राजदूत दिया है। बताया जाता है कि सर्जियो गोर का कार्यकाल भारत के लिए कतिपय चुनौतियों के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण अवसर भी ला सकता है। जिसके तहत भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते को तेज गति मिलने की संभावना जताई जा रही है। इसके तहत फार्मास्युटिकल्स, आईटी और रक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग और गहरा सकता है। साथ ही, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, ऊर्जा और रक्षा उत्पादन में निवेश व साझेदारी के नए रास्ते खुल सकते हैं। हालांकि, इन संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए दोनों देशों को उंस टकराव और तनाव से बचना होगा, जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद तेजी से बढ़ा है।
 
जानकारों का कहना है कि सर्जियो गोर की अमेरिकी निष्ठा  और प्रशासनिक क्षमता पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन उनके पास विदेश नीति का प्रत्यक्ष अनुभव बेहद कम है। यही वजह है कि ट्रंफ के इस ताजा फैसले से अमेरिकी कूटनीतिक सर्कल और थिंक टैंकों में असहजता देखी जा रही है। घाघ राजनयिकों का दो टूक मानना है कि यह नियुक्ति भारत के साथ संवाद को और जटिल बना सकती है। यदि ऐसा हुआ तो यह अमेरिका के दीर्घकालिक भूराजनीतिक हितों के प्रतिकूल होगा।

बताया जा रहा है कि भारतीय वस्त्र, रत्न और तकनीक से जुड़े कारोबारी क्षेत्रों में निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ गया है। क्योंकि क्षेत्र-विशेष टैरिफ और अस्थिर कूटनीतिक वातावरण वैश्विक सप्लाई चेन को प्रभावित कर सकते हैं। यही वजह है कि कूटनीतिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारत-अमेरिका रिश्तों में अगले कुछ महीने निवेश और व्यापार जगत के लिए बेहद अनिश्चित रहने वाले हैं। इस प्रकार माना जा रहा है कि सर्जियो गोर की नियुक्ति भारत-अमेरिका संबंधों में संभावनाओं और जोखिमों दोनों का संकेत देती है। जहां एक ओर रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग के नए रास्ते खुल सकते हैं, वहीं लेन-देन आधारित अमेरिकी कूटनीति और ऊंचे टैरिफ दर भारत के लिए बड़ी चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।

यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ भारत के रिश्तों को लेकर तमाम अटकलों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ किया कि ट्रेड डील पर बातचीत और मोलभाव लगातार चल रहे हैं। उन्होंने अपने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, ‘कट्टी नहीं हुई है, लोग आपस में बात कर रहे हैं। बातचीत चल रही है।’ बता दें कि जयशंकर का यह बयान ऐसे वक्त में सामने आया है, जब डोनाल्ड ट्रंप ने अपने बेहद करीबी सर्जियो गोर को भारत में अगले अमेरिकी राजदूत नियुक्त करने की घोषणा की है।

उल्लेखनीय है कि इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम 2025 में बोलते हुए जयशंकर ने स्पष्ट कहा कि भारत के रूसी तेल खरीदने के मामले पर ट्रंप की घोषणा से पहले कोई चर्चा नहीं हुई थी। यह हास्यास्पद है कि व्यापार-समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लोग दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं। अगर आपको भारत से तेल या रिफाइंड प्रोडक्ट खरीदने में कोई समस्या है, तो उसे न खरीदें। कोई आपको उसे खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है, इसलिए अगर आपको वह पसंद नहीं है, तो उसे मत खरीदें।

जयशंकर ने इसके साथ ही यह भी कहा कि मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी विदेश नीति को बहुत खुले तरीके से पेश किया है, जो अब तक के किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति की शैली से बिल्कुल अलग है। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘ट्रंप जिस तरह अपनी घरेलू और वैश्विक नीति को खुलेआम रखते हैं, वो पूरी तरह से परंपरागत शैली से हटकर है। टैरिफ को ट्रेड और नॉन-ट्रे़ड दोनों मामलों में हथियार की तरह इस्तेमाल करना भी उनके तरीके की खासियत है।'

वहीं, ट्रेड डील को लेकर जयशंकर ने दो टूक कहा कि भारत के ‘रेड लाइन्स’ स्पष्ट हैं…किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों से कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने अमेरिका पर दोहरे मापदंड का आरोप लगाते हुए कहा कि तेल के मुद्दे पर भारत को घेरा जा रहा है, जबकि दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक चीन और सबसे बड़ा एलएनजी आयातक यूरोपियन यूनियन पर यही मानक लागू नहीं किए गए।

इसके अलावा, भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई में मध्यस्थता के ट्रंप के दावों को भी भारतीय विदेश मंत्री ने सिरे से खारिज किया और कहा, ‘1970 के दशक से राष्ट्रीय सहमति यही है कि भारत-पाक रिश्तों में किसी भी तरह की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की जाएगी। हमारी रणनीतिक स्वायत्तता और किसानों के हित सर्वोपरि हैं. जो इससे असहमत हैं, वो देश को बता दें कि उन्हें इन मुद्दों की परवाह नहीं है।’

बताते चलें कि खुद अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी की भारतवंशी नेता निक्की हेली ने गत मंगलवार को कहा कि अमेरिका को भारत जैसे मजबूत साझेदार के साथ अपने संबंधों को खराब नहीं करना चाहिए और चीन को छूट नहीं देनी चाहिए। उन्होंने यह बात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ और रूसी तेल की खरीद को लेकर दिल्ली पर किए गए हमलों के बीच कही। निक्की हेली ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भारत को रूस से तेल नहीं खरीदना चाहिए। लेकिन चीन, जो एक विरोधी है और रूसी और ईरानी तेल का नंबर एक खरीदार है, उसे 90 दिनों के लिए शुल्क पर रोक लगा दी गई है। जबकि चीन को छूट नहीं देनी चाहिए और भारत जैसे मजबूत सहयोगी के साथ अपने रिश्ते खराब न करें।

उल्लेखनीय है कि दक्षिण कैरोलाइना की पूर्व गवर्नर हेली, ट्रंप के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत थीं और अमेरिकी प्रशासन में कैबिनेट स्तर के पद पर नियुक्त होने वाली पहली भारतवंशी बनीं। उन्होंने आधिकारिक तौर पर 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी और पिछले साल मार्च में दौड़ से हट गईं। हेली का बयान ऐसे वक्त आया है जब डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि भारत एक अच्छा व्यापारिक साझेदार नहीं रहा है और वह अगले 24 घंटों में भारत पर शुल्क को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाएंगे।

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व राजदूत निक्की हेली ने रूस से तेल आयात पर टैरिफ बढ़ाने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणाओं पर कटाक्ष किया। हेली ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि चीन अमेरिका का विरोधी है और रूसी और ईरानी तेल का नंबर एक खरीदार है, जिसे ट्रंप प्रशासन द्वारा 90 दिनों का टैरिफ विराम दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को रूस से तेल नहीं खरीदना चाहिए। लेकिन चीन, जो एक विरोधी है और रूसी और ईरानी तेल का नंबर एक खरीदार है, को 90 दिनों का टैरिफ विराम मिला है। चीन को छूट न दें और भारत जैसे मजबूत सहयोगी के साथ संबंध खराब न करें।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने मंगलवार को ही कहा था कि वह अगले 24 घंटों में भारत से आयात पर लगाए गए टैरिफ को वर्तमान 25% की दर से काफी हद तक बढ़ा देंगे, क्योंकि नई दिल्ली रूसी तेल की लगातार खरीद कर रहा है। ट्रंप ने एक साक्षात्कार में कहा कि वे युद्ध मशीन को ईंधन दे रहे हैं, और अगर वे ऐसा करने जा रहे हैं, तो मैं खुश नहीं होऊंगा। उन्होंने कहा कि भारत के साथ मुख्य अड़चन यह थी कि उसके टैरिफ बहुत अधिक थे, लेकिन उन्होंने नई टैरिफ दर प्रदान नहीं की।

वहीं, ट्रंप ने गत सोमवार को भी कहा था कि अमेरिका भारी मात्रा में रूसी तेल खरीदने के लिए भारत द्वारा भुगतान किए गए टैरिफ को काफी बढ़ाएगा, भारत पर 25 प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ और रूस से तेल आयात करने पर जुर्माना लगाया जाएगा। क्योंकि भारत न केवल भारी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि खरीदे गए तेल का एक बड़ा हिस्सा खुले बाजार में भारी मुनाफे पर बेच रहा है। उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि रूसी युद्ध मशीन द्वारा यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं. इस वजह से मैं भारत द्वारा अमेरिका को दिए जाने वाले टैरिफ में काफी वृद्धि करूंगा।

वहीं, एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और चीन मई में 90 दिनों के टैरिफ विराम पर सहमत हुए थे, जिसके दौरान अमेरिकी टैरिफ 145 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत और चीनी शुल्क 125 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिए गए थे। वहीं, सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति की टिप्पणी के तुरंत बाद, भारत ने कहा कि भारत को निशाना बनाना अनुचित है. विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता के एक बयान में कहा गया है कि सरकार अपने राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा की रक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगी।

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