पहलगाम आतंकी हमला: यूएनएससी रिपोर्ट में पाकिस्तान बेनकाब, काम नहीं आई चीनी-अमेरिकी दोस्ती!

पहलगाम आतंकी हमला: यूएनएससी रिपोर्ट में पाकिस्तान बेनकाब, काम नहीं आई चीनी-अमेरिकी दोस्ती!
@ कमलेश पांडेय/वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मॉनिटरिंग रिपोर्ट में भारत के पहलगाम आतंकी हमले में आतंकी संगठन "द रेजिस्टेंस फ्रंट" (टीआरएफ) की भूमिका का जिक्र होने के बाद अब पाकिस्तान के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं रह गया है।इस प्रकार आतंकवादियों की मदद के लिए अब दुनिया से मुंह छिपाने का भी कोई रास्ता उसके लिए नहीं बचा हुआ  है। देखा जाए तो उसका यह झूठ अब दुनिया के सामने एक बार फिर बेनकाब हो चुका है कि भारत में हुए आतंकवादी हमले से उसका कोई नाता नहीं है। कुलमिलाकर यह अप्रत्याशित रिपोर्ट भारत के अनवरत यानी लगातार किए गए कूटनीतिक प्रयासों की जीत है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि भारत के प्रति अमेरिका-चीन दोनों के रुख में नरमी आई है।

खास बात यह है कि मॉनिटरिंग टीम ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि टीआरएफ ने दो बार हमले की जिम्मेदारी ली है और यह पहलगाम आतंकी अटैक भी पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एल-ए-टी) के समर्थन के बिना संभव नहीं था। बता दें कि दुनियावी टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय एजेंसी 'एफएटीएफ' ने भी कुछ दिनों पहले ही कहा था कि इतना बड़ा आतंकी हमला अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मदद के बिना संभव ही नहीं हो सकता है। इस प्रकार अब पाकिस्तान के लिए दो-दो ग्लोबल एजेंसियों की फाइंडिंग रिपोर्ट को झुठलाना आसान नहीं होगा। यह भारत के लिए सुखदायक क्षण व बात दोनों है।

भारत के लिए यह रिपोर्ट इतनी अहम इसलिए है, क्योंकि इसके पीछे भारत ने बहुत मेहनत की है। यह भारत के लगातार किये गए प्रयासों का ही प्रतिफल है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी ) को टीआरएफ के बारे में लगातार जानकारी मुहैया कराई गई। साथ ही लश्कर-ए-तैयबा के साथ उसके जुड़ाव के सबूत भी सौंपे गए। गौरतलब है कि पिछले साल मई में ही विदेश मंत्रालय की अगुआई में एक डेलिगेशन ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र यानी यूएन के अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए थे।

खास बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में एक सदस्य देश के हवाले से कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर में 22 अप्रैल को आतंकवादी हमला लश्कर-ए-तैबा के समर्थन के बिना संभव नहीं था। इसलिए टीआरएफ और लश्कर के बीच संबंध है। वहीं एक दूसरे सदस्य ने कहा कि हमले टीआरएफ की ओर से किए गए, जो लश्कर का ही पर्यायवाची है। इसमें बिना नाम लिए पाकिस्तान का भी जिक्र है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि पहलगाम आतंकी हमले को पांच आतंकियों ने मिलकर अंजाम दिया था। इसमें टीआरएफ का  शामिल होना संकेत देता है कि आतंकियों ने पहगाम में टूरिस्ट डेस्टिनेशन को टारगेट किया था। 

उल्लेखनीय है कि पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले 'द रेसिस्सेटंस फ्रंट' का पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ की किसी रिपोर्ट या डॉक्यूमंट में जिक्र हुआ है। चूंकि यूएन की 1267 सैक्शन कमिटी की निगरानी रिपोर्ट आम सहमति से तैयार की जाती है, इसलिए पाकिस्तान को इस बार वैश्विक समर्थन नहीं मिला। रिपोर्ट से पाकिस्तान की उस रणनीति को झटका लगा है जिसमें वह द रिजिस्टेंस फ्रंट और पीपल अगेंस्ट फासिस्ट फ्रंट जैसे जिहादी प्रॉक्सी के मुखौटे के जरिए अपनी करतूतों को अंजाम देता है। भारत सरकार लगातार टीआरएफ और लश्कर के संबंध और पहलगाम हमले में भूमिका को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच कोशिशें करता रहा है।

बता दें कि लश्कर का प्रॉक्सी संगठन साल 2019 में जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल-370 के खत्म किए जाने के बाद अस्तित्व में आया। इसके बाद इसने कई आतंकी हमलो को अंजाम दिया। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने साल 2023 मे टीआरएफ और इससे जुड़े दूसरे संगठनों को बैन कर दिया था। यूएपीए एक्ट 1967 के तहत इसे आतंकी संगठन घोषित किया गया।

इस पूरे प्रकरण की खास बात यह भी है कि जहां पाकिस्तान ने हर बार सच्चाई उगलते सबूत को झुठलाने की पूरी कोशिश की, और इसमें उसे भारत के दूसरे पड़ोसी शत्रु राष्ट्र चीन का भी भरपूर साथ मिला। लिहाजा, इस बार भी उसे भरोसा था कि यूएनएससी में चीन उसे बचा लेगा। लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। दरअसल, पिछले दिनों पाकिस्तानी विदेश मंत्री ने अपने यहां की संसद में यह दावा किया था कि उन्होंने यूएनएससी के प्रेस स्टेटमेंट से टीआरएफ का नाम हटवा दिया है। जिससे अब उनका दांव उल्टा पड़ गया है और उनका झूठ पुनः दुनिया के सामने है।अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ भी इस बात को लेकर अचरज में हैं कि आखिर इस बार चीन-पाकिस्तान का गठजोड़ नाकाम कैसे हो गया? 

जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान की यह हार उसके  प्रॉक्सी वॉर की भी करारी मात समझी जा रही है। क्योंकि
लश्कर-ए-तैयबा घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन है। लिहाजा, इस पर कार्रवाई का दबाव बढ़ने के बाद पाकिस्तान ने 2019 में टीआरएफ को बड़ी मेहनत व उम्मीद के साथ खड़ा किया था। यही वजह है कि एलटीएफ के लड़ाकों और हथियारों का इस्तेमाल कर टीआरएफ भारत में आतंक फैलाने में लगा हुआ था। लेकिन, इस बार दुनिया ने उसकी प्रॉक्सी टैक्टिक्स को पहचान लिया और समय रहते ही उसकी कमजोर नस दबा डाली है।

चूंकि मॉनिटरिंग रिपोर्ट को सुरक्षा परिषद के सभी सदस्य आम सहमति से अपनाते हैं, जिसके बाद अब यह लगभग तय हो चुका है कि अब पाकिस्तान अपनी अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही से बिल्कुल बच नहीं सकता है। इस प्रकार देखा जाए तो पाकिस्तान पिछले कुछ अरसे से कूटनीतिक मोर्चे पर लगातार घिरता जा रहा है। पहले क्वाड (QUAD) के संयुक्त बयान में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र आया। उसके बाद अमेरिका ने टीआरएफ को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित किया। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए ठीक ही कहा है कि यूएनएससी का सदस्य नहीं होने के बावजूद भारत उससे मान्यता दिलाने में कामयाब रहा कि टीआरएफ पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा का ही एक मुखौटा संगठन है। जयशंकर ने राज्यसभा में कहा कि यूएनएससी की रिपोर्ट से पाकिस्तान फिर बेनकाब हुआ है।

इससे यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत के लिए आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान को दुनियावी कठघड़े में खड़ा करने और उससे नैतिक जिरह करने का यह बिल्कुल सही समय है। यही वह तरीका है जब भारत आतंकवाद के प्रायोजक पाकिस्तान पर अपने इस शिकंजा को और अधिक कस सकता है और उसे कसना भी चाहिए, ताकि जम्मू-कश्मीर की भूमि को रक्तरंजित करने से पाकिस्तान बाज आए। यदि ऐसा हुआ तो यह भारत की बड़ी सफलता होगी।

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