संवेदनशील लेखक के रूप में चर्चित जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र 'सिंह' के प्रति एक पाठक का स्नेहिल उद्गार

संवेदनशील लेखक के रूप में चर्चित जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र 'सिंह' के प्रति एक पाठक का स्नेहिल उद्गार 
परम सम्माननीय डा० दिनेश चन्द्र 'सिंह' जिलाधिकारी महोदय, यूं तो आपकी पुस्तक 'काल प्रेरणा' के विषय में कुछ भी कहना सूर्य को दीप दिखाने के सदृश है, पर आवरण पृष्ठ पर डॉ० दिनेश चंद्र सिंह देखते ही एक प्रसंग याद आ गया, जिसका उल्लेख करना प्रासंगिक है।

अवसर था -

नौमी तिथि मधुमास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।
मध्य दिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।
सो अवसर विरंचि जब जाना। चले सकल सुर साजि विमाना ।।

सम्पूर्ण गगन देवताओं के समूह से भर गया। अवध धाम की छटा ही निराली थी, हो भी क्यों न, प्रभु का प्राकट्य हुआ था।

मास दिवस कर दिवस मा मरम न जानइ कोइ । रथ समेत रवि थाकेउ, निसा कवन विधि होइ।।

परन्तु रात्रि होती भी तो कैसे। श्री अवध जी की तो परम्परा ही रही है कि सर्वस दान कीन्ह सब काहू। जेहि पावा राखा नहि ताहू।।

महराज दशरथ जी के दरबार में एक याचक आ खड़ा हुआ और घोड़ों की याचना की। पर घुड़साल में घोड़े तो पहले ही दान में समाप्त हो गये थे, इस असहज स्थिति में सूर्य देवता ने अपने सोलहों अश्व महराज दशरथ जी को दान हेतु प्रेषित कर दिये। इस प्रकार अश्व विहीन रथ बढ़ता भी कैसे निशा होती भी कैसे।

येन-केन-प्रकारेण चंद्रमा भी लुकता-छुपता हुआ इस अवसर पर आया और भगवान से उलाहना देते हुए विनती की कि मुझे इस अवसर पर क्यों वंचित रखा। भगवान ने उसके उलाहना को स्वीकार्य करते हुए आशीर्वाद दिया "आज से तुम्हें अपने मस्तक पर शिरोधार्य करता हूं। यद्यपि मैं रघुकुल सूर्यवंश का हूँ, तथापि तुम्हारे बिना मेरा नाम अपूर्ण रहेगा।" तभी से त्रेता में श्री रामचन्द्र तथा द्वापर में श्री कृष्णचन्द्र आने लगा। ऐसे समदर्शी प्रभो की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।

ममता मयी मां एवं स्व जन्मभूमि पुरैनी, नगीना, बिजनौर की माटी के प्रति प्रेम और उनसे मिल रहे निरन्तर आशीर्वाद के कारण ही आप जीवन के प्रगति पथ पर बढ़ते चले आये हैं। ग्राम के ही प्राइमरी तथा जूनियर हाईस्कूल से शिक्षा आरम्भ करके आपने अपने संकल्प एवं दृढ इच्छाशक्ति के द्वारा आई०ए०एस० बनकर प्रदेश के महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया और इस मिथक का भी खण्डन किया कि कान्वेन्ट शिक्षा ही विशेष उपयोगी है। 

आपकी उदारता, सहजता तथा कार्य को शीघ्र निपटाने की कला तथा विषम भयावह परिस्थितियों जैसे कोरोनाकाल में सरकार तथा जनता की कसौटी पर खरा उतरना ही आपकी विशेषता है। योग और शीर्शासन भी आपकी सफलता का कारण है। नवयुवकों एवं विद्यार्थियों के लिए आपकी इस जीवनयात्रा से प्रेरणा लेनी चाहिये, तथा निश्चित संकल्प एवं दृढ इच्छा शक्ति के साथ सफलता हेतु सतत् प्रयास करना चाहिये।

कर्म प्रधान विश्व कर राखा। जो जस करई सो तस फल चाखा।। परिणाम तो ईश्वर के अधीन है। अतः इस विश्वास को भी नहीं खोना चाहिये।

मूक होइ वाचाल पंगु चढइ गिरवर गहन। जासु कृपा सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन।।

आपको इस पुस्तक द्वारा मार्गदर्शन कराने हेतु बारम्बार धन्यवाद!

एक पाठक की कलम से -

(रामनाथ तिवारी)

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